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रुचिरा हे कृपण राजा ! तुं चंद्र एवं स्फटिक सम उज्ज्वल, शांत, कर्म रहित, मोक्ष के दाता, स्वर्ग सुख के दाता, मोक्ष सुख के संवेदक, सत्य रूपी संपत्ति के स्वामी, राजा रूपी नक्षत्रों में सूर्य समान, रंक एवं दीन जीवों पर कृपावृष्टि करनेवाले, भुक्ति के प्रदाता, एवं समर्थ श्री अजितनाथ . भगवान की स्तुति कर ॥४॥
जिनेन्द्रस्तोत्रम्