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अन्वयः - (हे) खख ! त्वम् [कृपणनृप ! त्वम्] खणखम् [चन्द्रबिम्बस्फटिक
वर्णम् खम् [शान्तम् खखम् [शून्यकर्माणम् खम् [मुक्तिदायकम्] खखम् [स्वर्गसुखदातारम्] खणखम् [शिवशर्मसंवेदनकारकम्] खखम् [सत्यसंपत्स्वामिनम्] खणखम् [नृपतिनक्षत्रनभोमणिम्] खवखम् [रङ्कदीनयोरपि कृपावर्षकम्] खम् [भुक्तिदायकम्] खम् [समर्थम्] अजितं जिनम् [श्रीअजितनाथजिनेश्वरम्] स्तुष्व [स्तवनविषयीकुरुष्व] ।
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जिनेन्द्रस्तोत्रम्