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________________ ४८०) ज्ञान और क्रिया-मोक्ष रथ के दो पैये है । ज्ञान आँख है तो क्रिया पैर है, दोनो के सुमेल से ही आत्मा मोक्ष मंजिल तक पहुँच सकती है । इसलिए दोनो का समन्वय ही मोक्ष का कारण है । ४८१) इस सूत्र में एकदम सफेद वस्त्र पहननेवाले मुनि को सिर्फ द्रव्य आवश्यक क्रिया करनेवाला कहा है । अर्थात मुनि मेले कपडे पहने-कपडो का काप जल्दी न निकाले । ४७. अन्य ग्रंथ संदर्भ ४८२) साधु को नाखुन बढाने की मनाई करने में आई है। ४८३) भस्मग्रह (भगवान के निर्वाण से २५०० साल बाद) उतरने के बाद लोगो की "ब्रह्मचर्य सहित” की शुध्ध, अल्प भी आराधना से देवता प्रसन्न होंगे। ४८४) जिस देश (राज्य) में सूतक का लोकपरंपरा अनुसार जो व्यवहार चलता हो, उस प्रकार व्यवहार करना । ४८५) व्यवहार समकित भी निश्चय समकित का कारण है। ४८६) साध्वीजी कीसी को प्रायश्चित-आलोचना नहीं दे सके। ४८७) देव-गुरु और संघ की बहुमान-भक्ति करने से जीव 'व्यवहार समकित' की प्राप्ति करता है। " ४८८) पांच पद की अनानुपूर्वी गीनने से छमासी तप का फल तथा नवपद (नौ पद) की अनानुपुर्वा गीनने से बारमासी तप का फल मिलता है।
SR No.023184
Book TitleAgam Ke Panno Me Jain Muni Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvallabhsagar
PublisherCharitraratna Foundation Charitable Trust
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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