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________________ [ ] लिये लोग उसे आसानीसे खा सकें इसलिये, उसकी गोलियोंपर चीनी चढ़ा दी जाती है, उसी तरह जीवन चरित्रोंको भी लोगोंकी रुचिके अनुसार कथा-कहानी या उपन्यासके रूपमें उपस्थित करनेकी आवश्यकता पड़ती है। ऐसा करनेसे उनकी नीरसता दूर हो जाती हैं, फलतः लोग उन्हें बड़े चावसे पढ़ने लगते हैं और उनसे उन्हें यथेष्ट लाभ भी होता है । कथा-कहानी और दृष्टान्तोंपर मनुष्यका कुछ स्वभाविक प्रेम होता है । यह प्रेम किसी-न-किसी रूपमें सभी अवलाके स्त्री पुरुषोंमें पाया जाता है । इसी प्रेमके कारण छोटे छोटे बच्चे किस्से कहानी सुननेके लिये उत्सुक रहते हैं, इसी प्रेमके कारण युवक-युवतियां उपन्यासोंके पीछे खाना-पीना तक भूल जाते हैं और शायद इसी प्रेमके कारण बड़े-बूढ़े पूर्वजोंका गुण गान किया करते हैं । ऐसी भवस्थामें यह निर्विवाद है, कि महात्माओंके जीवज चरित्र कथा-कहानी और उपन्यासके रूपमें उपस्थित करनेसे वे आबाल-वृद्ध-वनिता सभीके लिये उपयोगी प्रमाणित हो सकते हैं और सभी उनसे लाभ उठा सकते हैं। मनुष्यकी प्रकृति बड़ी चंचल होती है। उसके हृदयमें मित्य ही नये-नये तरंग और नयी-नयी भावनायें उत्पन्न होकर कार्य रूपमें परिणत हुआ करती हैं । यदि मनुष्य सत्संग करता है और सद्ग्रन्थ पढ़ता है, तो उसके हृदयमें अच्छे विचार उत्पन्न होते हैं. और वह अच्छे ही कार्य करता है। यदि संयोगवश वह कुसंगति और कुग्रन्थोंके फेर में पड़ जाता है, तो उसे पथभ्रष्ट होते देर नहीं
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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