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________________ [ २ ] इसे हम शुभ लक्षण नहीं कह सकते । उपन्यास बहुधा असम्भव कल्पनाओं और गपोड़ोंसे भरे रहते हैं इसी तरह सामाजिक कहलानेवाले उपन्यासोंमें भी अधिकांश उपन्यास ऐसे होते हैं; जिनमें किसी दूसरी जाति या दूसरे समाजके आदर्शोंका वर्णन पाया जाता है। ऐसे उपन्यास हमारे बच्चे, युवक और युवतियोंके लिये उपयुक्त नहीं कहे जा सकते। इनके पढ़नेसे उन्हें सिवा हानिके कोई लाभ नहीं हो सकता । पुस्तकें, चाहे वे उपन्यास ही क्यों न हों, पाठकोंके भाचार विचारोंको उन्नत बनानेवालीउनके हृदय में महत्वाकांक्षा और महान अभिलाषाओंको उत्पन्न करनेवाली होनी चाहिये । यह तभी हो सकता है, जब वे किसी उच्च उद्देशको लेकर ही लिखी और प्रकाशित की गयी हों । उपन्यासोंमें यह बात नहीं पायी जाती, इसी लिये वे हानिकारक प्रमाणित होते हैं । जैन समाजमें ऐसे अनेक महा पुरुष और सती - साध्वियें उत्पन्न हुई हैं, जिनके चरित्र हमारे लिये बढ़िया पाठ्य सामग्री बन सकते हैं। जीवन चरित्रों द्वारा जन समाजको सदाचार, म्याय, नीति तथा धर्म कर्मकी शिक्षा जितनी आसानीसे दी जा सकती है, उतनी और किसी विषयके ग्रन्थों द्वारा नहीं दो जा सकती । साधारण बुद्धिके पाठकोंके लिये तो यह और भी उपयुक्त प्रमाणित होते हैं; किन्तु यह खेदकी बात हैं कि केवल जीवन चरित्र पढ़नेमें पाठकोंका जी नहीं लगता। जिस प्रकार कुनैन लाभ दायक होनेपर भी उसकी कटुता दूर करनेके
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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