SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 575
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२८ * पाश्वनाथ चरित्र # - मालूम हुआ कि वह विशाला नगरीसेही आ रहा है अतएब उसने अपने मामा धनदत्तका कुशल समाचार उससे पूछा । पथिकने बतलाया कि - " धनदत्त इस समय बड़ी विपत्ति में पड़े हुए हैं। राजाने उन्हें सपरिवार कैदकर जेलखानेमें बन्द कर दिया है।" यह सुन बन्धुदत्तने पूछा, -" क्यों भाई ! उन्होंने राजाका क्या अपराध किया था ?” पथिकने कहा, – “एक दिन राजा उद्यानसे क्रीड़ा कर नगरकी ओर आ रहा था। उस समय मार्ग में कहीं धमदत्तका पुत्र बैठा हुआ था । कार्यमें व्यस्त होनेके कारण उसने राजाको न देखा और उनको प्रणाम भी न किया । अतएव राजाने इसे उसकी धृष्टता समझ कर उसे कैद कर लिया। इस समय धनदत्त कार्यवश कहीं बाहर गया था । लौटने पर जब उसने यह समाचार सुना, तब राजासे क्षमा प्रार्थना कर पुत्रको छोड़ देनेका प्रस्ताव किया। राजाने पहले तो इसे मंजूर न किया, किन्तु बहुत कुछ कहने-सुनने पर अन्तमें इस शर्तपर स्वीकार किया कि यदि एक करोड़ रुपये दण्ड स्वरूप देना स्वीकार हो तो वह उसे छोड़ सकता है । धनदत्तने यह शर्त मंजूर कर अपने पुत्रको छुड़ा लिया है; किन्तु इतनी रकम राजाको देना उसके सामर्थ्यके. बाहर की बात थी अतएव घटती हुई रकम लानेके लिये वह अपने भान्जे बन्धुदत्तके यहां गया है।" पथिककी यह बात सुन बन्धुदत्त अपने मनमें कहने लगा,“ अहो ! मेरे कर्मको गति भी केसी विचित्र है। मैंने मामाके यहां जानेका विचार किया, तो वहांका मार्ग पहले से ही बन्द हो
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy