SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 574
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम पर्व ५२६ आदिनाथ-चरित्र .... इस अवसर्पिणीके तीसरे आरेमें जब निन्यानवे पक्ष बाकी रह गये थे, उसी समय माघ मासकी कृष्ण त्रयोदशीके दिन, पू हिमें ही, जब चन्द्रमाका योग अभिजित-नक्षत्र में आया हुआ था, तभी पर्यङ्कासन पर बैठे हुए उन महात्मा प्रभुने बादर-काय-योग में रहकर बादर मनोयोग और बादर वचनयोगका रोध कर लिया। इसके बाद सूक्ष्म काय-योगका आश्रय ग्रहण कर, बादर काययोग, सूक्ष्म मनोयोग और सूक्ष्म वचनयोगका रोध कर डाला। अन्तमें सूक्ष्म काययोगको भी लुप्त करके सूक्ष्मक्रिय नामके शुक्लध्यानके तीसरे चरणके अन्तमें प्राप्त हुए। इसके बाद उच्छिन्नक्रिय नामक शुक्लध्यानके चौथे चरणका आश्रय लिया, जिसका काल परिमाण पाँच ह्रस्वाक्षरके उच्चारण में जितना सयय लगता है, उतना ही है। इसके बाद केवलज्ञानी, केवलदर्शनी सब दुःखोंसे परे, अष्टकाँका क्षय कर सब अर्थोके सिद्ध करनेवाले, अनन्तवीर्य,अनन्तसुख और अनन्त ऋद्धिसे युक्त प्रभु, बन्धके अभावसे एरण्ड-फलके बीजके समान ऊर्द्ध-गति पाकर, स्वभावसेही सरल मार्गसे लोकानको प्राप्त हुए। दस हज़ार श्रमणोंने भी, अनशनबत ग्रहण कर, क्षपकश्रेणीमें आरूढ़ हो, केवलज्ञान लाभकर, मन-वचन और कायाके योगको सब प्रकारसे रुद्ध कर, स्वामीकी ही भांति तत्काल परमपद लाभ किया। प्रभुके निर्वाण-कल्याणकके समय, सुखका नाम भी नहीं जाननेवाले नारकीयोंकी दुःखाग्नि भी क्षणभरके लिये शान्त हो गयी। उस समय शोकसे विह्वल होकर चक्रवर्ती क्नसे ढाये हुए पर्वत ३४
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy