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________________ ४४६ प्रथम पर्व . आदिनाथ-चरित्र देवतागण उसी समय बाहुबलीके सैनिक पड़ावमें आ पहुँचे। मन-ही-मन यह विचार कर विस्मयमें डूबते हुए, कि यह बाहुबली तो दृढ़ अवष्टम्भवाली मूर्तिसे भी ढूढ़ है, देवताओंने बाहुबलीसे कहा,___ "हे ऋषभ नन्दन ! हे संसारके नेत्ररूपी चकोरोंको आनन्द देनेवाले चन्द्रमा ! आपकी सदा जय हो और आप सदेव सानन्द रहे। आप समुद्रकी भांति कभी मर्यादाका उल्लंघन नहीं करते, और कायर पुरुष जैसे युद्धसे डरते हैं, वैसेही आप भी लोकापवाद से डरते हैं। आप न तो अपनी सम्पत्तिका गर्व करते हैं, न दूसरोंकी सम्पत्ति पर आपको ईर्षा होती है। आप दुर्विनीत मनुष्योंके दण्डदाता हैं, गुरुजनोंकी विनय करनेवाले हैं और विश्वको अभय करनेवाले ऋषभस्वामीके योग्य पुत्र हैं। इसलिये आपको ऐसे कार्यमें प्रवृत्त नहीं होना चाहिये, जिससे बहुतसे लोगोंका सत्यानाश हो जाये। अपने बड़े भाईके ऊपर चढ़ाई करनेकी ऐसी तैयारी करना आपके लिये उचित नहीं और अमृत से जिस प्रकार मृत्यु नहीं हो सकती, उसी प्रकार आपसे ऐसा काम हो भी नहीं सकता। अभीतक कुछ भी नहीं बिगड़ा है, इसलिये खल पुरुषकी मैत्रीकी तरह आप इस युद्धकी तैयारी से हाथ खींच लीजिये । जैसे मन्त्र द्वारा बड़े-बड़े सर्प भी पीछे लौटा दिये जा सकते हैं, वैसेही आपकी आज्ञासे ये वीर योद्धा युद्धके शोरसे अलग हो जाये और आप अपने बड़े भाई भरतराज के पास जाकर उनकी वश्यता स्वीकार कर लीजिथे। ऐसा
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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