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________________ त्रैवर्णिकाचार । चारित्रोज्वलगन्धवासितजनं शिष्येषु कल्पद्रुमं, वन्देऽहं परलोकसारसुखदं सिद्धान्तपारप्रदम् । आचार्य जिनसेनमात्मचिदुदैर्भव्यौघसस्य घनं, संसेव्यं प्रगणैर्गरिष्ठपददं रत्नत्रयालङ्कृतम् ॥ ६ ॥ मैं उन आचार्य प्रवर जिनसेनको नमस्कार करता हूँ जिन्होंने अपने चारित्रकी निर्मल सुगन्धसे सबको सुगन्धित किया है, जो अपने शिष्योंके मनोरथोंको पूर्ण करने कल्पवृक्ष हैं, परलोकमें सारभूत सुखका मार्ग दिखानेवाले हैं, सिद्धान्तके पार पहुँचे हुए हैं; और जैसे जल देनसे धान्य हराभरा हो जाता है वैसे ही उनके ज्ञान-जलसे भव्यसमूह आल्हादित होता है, अच्छे अच्छे गुणीजन जिनकी सेवा करते हैं, उत्तम स्थानके देनेवाले हैं और रत्नत्रयसे भूषित हैं ॥ ६ ॥ कलियुगकलिहन्ता कुन्दकुन्दो यतीन्द्रो, भवजलनिधिपोतः पूज्यपादो मुनीन्द्रः । गुणनिधिगुणभद्रो योगिनां यो गरिष्ठो, जयति नियमयुक्तः सिद्धसेनो विशुद्धः ॥७॥ कलिकाल-सम्बधी पापोंको नाश करनेवाले श्रीकुन्दकुन्दाचार्य, भव-समुद्रसे पार ले जानेवाले और सम्पूर्ण मुनियोंमें श्रेष्ठ श्रीपूज्यपादाचार्य, गुणोंकी खान श्रीगुणभद्र आचार्य और चारित्रसे युक्त निर्मल श्रीसिद्धसेन आचार्य जयवन्त रहें ॥ ७ ॥ . महेन्द्रकीर्तेश्चरणद्वयं मे, स्वान्ते सदा तिष्ठतु सौख्यकारि । सिध्दान्तपाथोनिधिपारगस्य, शिष्यादिवर्गेषु दयान्वितस्य ॥८॥ जो सिद्धान्त-समुद्रका पार पा चुके हैं और अपने शिष्यवर्गोंपर दया रखनेवाले हैं उन श्री महेन्द्रकीर्ति भट्टारकके सुख उपजानेवाले दोनों चरण मेरे अन्तःकरणमें सदैव निवास करें ॥ ८॥ यत्प्रोक्तं जिनसेनयोग्यगणिभिः सामन्तभद्रैस्तथा, सिध्दान्ते गुणभद्रनाममुनिभिर्भट्टाकलककैः परैः । श्रीसूरिद्विजनामधेयविबुधैराशाधरैर्वाग्वरै, - स्तदृष्ट्वा रचयामि धर्मरसिकं शास्त्रं त्रिवर्णात्मकम् ॥९॥ जिनसेन, समन्तभद्र, भट्टाकलङ्क, ब्रह्मसूरि और पंडित आशाधर आदि प्रौढ़ विद्वानोंने अपने अपने रचे हुए ग्रन्थोंमें जो कहा है उसीको देखकर तीनों वर्गों के आचार-रूप इस धर्मरसिक शास्त्रकी रचना की जाती है ॥ ९ ॥ बह्मज्ञानविकासका व्रततपोयुक्ताश्च ते ब्राह्मणा, स्वायन्ते शरणच्युतानपि नराँस्ते क्षत्रियाः सम्मताः ।
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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