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________________ सोमसेनभट्टारकविरचित । द्वादशभेदभिन्नं हि शरीरशोषकं तपः। विद्यादिदानं पात्रेभ्यो दत्तं चेत्याग उच्यते ॥४०॥ बाह्यान्तर्भेदसंयुक्तं परिग्रहं परित्यजेत् । सर्वस्त्री जननीतुल्या ब्रह्मचर्य भवेदिति ॥ ४१ ॥ दशलक्षणधर्मोऽयं मुनीनां मुक्तिदायकः। निश्चयव्यवहाराभ्यां द्विविधोऽपि जिनागमे ॥ ४२॥ सजनों और दुर्जनोंपर क्षमा करना, सम्पूर्ण जीवोंपर कृपापूर्वक कोमल परिणाम रखना, शत्रु, मित्र आदिके साथ कपट न करना, सत्यरूप दयाका कारण यथार्थ बचन बोलना, देवकी पूजा आदिके निमित्त उत्तम शुद्धि करना, पांच इंद्रियोंको विषयोंसे रोकना और जीवोंपर दया करना, शरीरको कृश करनेवाला बारह प्रकारका तपश्चरण करना, पात्रोंको विद्या आदि दान देना, बाह्य-आभ्यंतर रग्रहका त्याग करना और सम्पूर्ण स्त्रियोंको माताके तुल्य समझना सो क्रमसे क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य-इस प्रकार दशलक्षण धर्म है, जो जिनागममें निश्चय और व्यवहारके भेदसे दो प्रकारका कहा गया है। तथा वह दोनों ही प्रकारका धर्म मुनियों को मुक्ति देनेवाला है ।। ३७-४२ ॥ पांच आचारोंके नाम और स्वरूप । सम्यक्त्वं निर्मलं यत्र दर्शनाचार उच्यते । द्वादशाङ्गश्रुताभ्यासो ज्ञानाचारः प्रकीर्तितः॥४३॥ सुनिमलं तपो यत्र तपआचार एव सः।.. तपस्सु क्रियते शक्तिर्वीर्याचार इति स्मृतः॥४४॥ चारित्रं निर्मलं यत्र चारित्राचार उत्तमः। पञ्चाचार इति प्रोक्तो मुनीनां नायकैः परः॥ ४५ ॥ अतीचार-रहिन सम्यक्त्त्वका पालन करना दर्शनाचार कहा जाता है, द्वादशागका अभ्यास करना ज्ञानाचार कहा गया है, निर्मल तप करना तपाचार माना गया है, तपश्चरण करनेमें जो शक्ति है उसे वीर्याचार कहते हैं और निर्मल चारित्रका आचरण करना चारित्राचार है-यह मुनियोका पंचाचार है, जो गणघर देवोंद्वारा कहा गया है ॥ ४३-४५ ॥ आचार्योंके छत्तीस गुण ।। द्वादशधा तपोभेदा आवश्यकाः परे हि षट् । पश्चाचारा दशधर्मास्तिस्रः शुद्धाश्च गुप्तयः ॥ ४६॥ आचायाणां गुणाः प्रोक्ताः षट्त्रिंशच्छिवदायकाः। द्वात्रिंशदन्तरायाः स्युर्मुनीनां भोजने मताः॥४७॥ बारह तप, छह आवश्यक, पांच आचार, दशधर्म और तीन गुप्ति-ये आचार्योंके मोक्ष-सुखके देनेवाले छत्तीस गुण हैं। तथा मुनियों के भोजनके बत्तीस अन्तराय माने गये हैं ॥ ४६-४७ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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