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________________ वणिकाचार | बाईस परीषों के नाम । वृद्धयर्थं तपसां साध्याः क्षुधादिकपरीषहाः । क्षुदशीतोष्णदंशाश्च रत्यरतिश्च नग्नता ॥ ३१ ॥ नारी चर्या निषद्या च शय्याक्रोशवधास्तथा । याञ्चालाभतृणस्पशा मलरोगाविति द्वयम् || ३२ ॥ सत्कारश्च पुरस्कारः प्रज्ञाज्ञानमदर्शनम् । एते द्वाविंशतिज्ञेयाः परीषहा अघच्छिदः ॥ ३३ ॥ तपश्वरणकी वृद्धिके लिए पापों का नाश करनेवाली बाईस क्षुधादि परोषहोंको सहन करना चाहिए | क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, दंशमशक, अरति, नग्नता, स्त्री, चर्या, निषद्या, शय्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, तृणस्पर्श, मल, रोग, सत्कार- पुरस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान और अदर्शनये उनके नाम हैं ॥ ३१-३३ ॥ ३४९ मुनियोंके अठाईस मूलगुणोंके नाम । अष्टाविंशतिसंख्याता मूलगुणाश्च योगिनः । व्रतसमितीन्द्रियनिरोधाः पृथक् ते पञ्चपञ्चधा ॥ ३४ ॥ षडावश्यकका लोचोऽदन्तवणमचेलता । स्थितिभोजनं भूशय्या अस्नानमेकभोजनम् || ३५ ॥ मुनियों के अट्ठाईस मूलगुण होते हैं । वे ये हैं - पांच महाव्रत, पांच समिति, पांचों इन्द्रियोंका निरोध, छह आवश्यक, केशलोंच, अदन्तवन, अचेलकत्व, स्थितिभोजन, भूशयन, अस्नान और एकभक्त ॥ ३४-३५ ॥ छह आवश्यक क्रियाओं के नाम । सामायिकं तनूत्सर्गः स्तवनं वन्दनास्तुतिः । प्रतिक्रमश्च स्वाध्यायः षडावश्यकमुच्यते ।। ३६ ।। सामायिक, कायोत्सर्ग, स्तवन, वन्दना, प्रतिक्रमण और स्वाध्याय - ये छह आवश्यक क्रियाएं हैं ॥ ३६ ॥ उत्तम क्षमा आदि दशधर्म । सर्वैः सह क्षमा कार्या दुर्जनैः सज्जनैरपि । मृदुत्वं सर्वजीवेषु मार्दवं कृपयान्वितम् ||३७|| -कपटो न हि कर्तव्यः शत्रुमित्रजनादिषु । दयाहेतुवचो वाच्यं सत्यरूपं यथार्थकम् ॥ ३८ ॥ देवपूजादिकार्यार्थं विधेयं शौचमुत्तमम् । पञ्चेन्द्रियनिरोधो यो दयाधर्मस्तु संयमः || ३९ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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