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________________ २२० सोमसेनभट्टारकविरचित - कर्णेजपान् खलाँश्चोरान् परस्त्रीलम्पटान्मदान् । देशान्निर्वासयेद्राजा हिंसकान्मद्यपायिनः ॥ १०० ॥ चुगलखोरों, दुष्टों, चोरों, परस्त्री लंपटियों, मदोन्मत्तों, हिंसकों और शराब पीने वालोंको राजा देशसे निकाल बाहिर करे ॥ १०० ॥ स्वदेशादागतं वित्तं यथापात्रं समर्पयेत् । ख भट्टं नटं काणमन्धादीन्प्रतिपालयेत् ॥ १०१ ॥ अपने देशसे बसूल हुए धनको योग्य पात्रोंको देवे तथा उससे लंगड़े, भाट, नट, काने, अंधे आदि लोगोंका पालन-पोषण करे ॥ १०१ ॥ इत्यादि देशनं कृत्वा सन्ध्यायाः समये ततः । गच्छेज्जनालयं राजा सन्ध्यादिक क्रियां भजेत् ॥ १०२ ॥ उपर्युक्त कार्यों के बारेमें अपने नौकरादिकोंको आज्ञा करके राजा 'जिनमंदिरको जावे और वहांपर सन्ध्यावंदन आदि क्रियाएं करे । आचार कहा ॥ १०२ ॥ वैश्यस्य सत्क्रियां प्रोचे पुराणस्यानुसारतः । मषी कृषिः पाशुपाल्यं वाणिज्यं वैश्यकर्मणि ॥ सन्ध्याके समय इस तरह क्षत्रियोंका १०३ ॥ अब पुराणके अनुसार वैश्योंका आचार-व्यवहार कहता हूँ । वैश्यके कर्ममें मी ( लिखना पढ़ना ), कृषि ( खेती ), पशुपालन और वाणिज्य (व्यापार), ये चार कार्य मुख्य हैं ॥ १०३ ॥ राजसेवां समाश्रित्य कुर्याद्देशस्य लेखनम् । आयव्ययं कुलाचारं दत्तं भुक्तं नृपेण यत् ॥ १०४ ॥ राजकी नौकरी पाकर सारे देशके आयव्ययका हिसाब लिखे कि राज्य में कितनी आमदनी है, कितना खर्च है; राजाके कुलका आचरण कैसा है, राजाने किसको क्या दिया है, उसने स्वयं किस चीजका उपभोग किया है ॥ १०४ ॥ व्ययं तु सदने स्वस्य वाऽऽदायं वा कतिप्रमम् । द्रविणं कस्य किं दत्तं गृहीतं किं च कस्य वा ।। १०५ ।। इसी तरह वैश्य अपने घरका हिसाब-किताब लिखे कि आज अपने घर में क्या खर्च हुआ है, कितनी आमदनी हुई है, किसको कितने रुपये दिए हैं और किसके कितने रु० आए हैं ॥ १०५ ॥ कति धान्यं कति द्रव्यं सुवर्ण वाऽथ गोधनम् । भुक्तिभाण्डं च संलेख्यं यतो न संशयो भवेत् ॥ १०६ ॥ अपने घर में कितना धान्य, कितना द्रव्य, कितना सोना, कितनी गाएँ - भैषें और कितने भोजनके बर्तन हैं, ये सब लिखे; ताकि कोई तरहका सन्देह न रहे ॥ १०६ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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