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________________ सोमसेनभधारकविरचित अयोग्यका त्याग करना-इन विषयोंकी विधि इस अध्यायमें मुझ श्रीसोमसेनने वर्णन की है। ये क्रियाएँ जिन वचनके अनुसार ही कही गई हैं, जो पुण्यको प्राप्त कराने वाली हैं ॥ २४५॥ ये कुर्वन्ति नरोत्तमाः सुरुचिभिर्दानं जिनेन्द्रार्चनं । तत्त्वातत्त्वविचारणां जिनपतेः शाखान्धितः सम्भवाम् ॥ धान्यास्ते पुरुषाः सुमागेजनका मोक्षस्य चाराधका । ___भोक्तारोगुणसम्पदा त्रिभुवनस्तुत्याः परं धार्मिकाः ॥ २४६ ॥ जो श्रेष्ठ पुरुष, भक्तिभावसे पात्रोंको दान देते हैं, जिन भगवानकी पूजा करते हैं और जिन भगवानके कहे हुए शास्त्रके अनुसार योग्य अयोग्यका विचार करते हैं, वे पुरुष धन्य हैं, सुमार्गके प्रवर्तक हैं, मोक्षकी आराधना करनेवाले हैं, गुण-सम्थसिके मोगनेवाले हैं, तीन भुक्नके द्वारा स्तवनीय हैं और बड़े धर्मात्मा हैं ॥ २४५ ॥ . इति श्रीधर्मरसिकशास्त्रे त्रिवर्णाचारकथने भट्टारकश्रीसोमसेनविरचिते जिनचैत्यालयगमनादिभोजनान्त क्रियाप्रतिपादकः षष्ठोऽध्यायः समाप्तः ।
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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