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________________ .त्रैवर्णिकाचार। २०५ पात्र-दान और जिन भगवानकी पूजा करते समय तथा एकाशनके दिन पान न खाये। और पारणेके दिन भोजन करनेसे पहिले पान न खावे ॥ २३९ ॥ एलालवंगकर्पूरसुगन्धान्यसुवस्तुकम् । . . भक्षयेत्सह पर्णैश्च तथा वा मुखशुद्धये ॥ २४० ॥ इलायची, लौंग, कपूर और दूसरे २ सुगन्धित पदार्थ पानके साथ खाबे । तथा मुखशुद्धिके लिए वगैर पानके भी इन चीजोंको खावे ॥२४०॥ दोपहरके समय शयन करनेकी विधि । शनैः शनैस्ततो गत्वा चाष्टोत्तरशतं पदान् । उपविश्य घटीयुग्मं स्वपेद्वा वामभागतः॥२४१ ॥ तांबूल चर्वण कर चुकनेके बाद धीरे धीरे एक सौ आठ पैंड घूमकर अथवा कुछ थोड़ी देर तक बैठकर बाई करबटसे दो घड़ी सोबे ॥ १४१ ॥ न स्वपेदिवसे भूरि रोगस्योत्पत्तिकारणम् । कार्याणां च विनाशः स्यादङ्गशैथिल्यमत्र च ॥ २४२ ॥ दिनमें बहुत न सोबे । क्योंकि दिनमें सोना रोगकी उत्पत्तिका कारण है, गृह-कार्योंमें हानि पहुँचती है और सारे अंग-उपांग ढीले पड़ जाते हैं ॥ २४२॥ अत्यम्बुपानाद्विषमाशनाच । दिवाशयाज्जागरणाच रात्रौ ।। निरोधनान्मूत्रपुरीषयोश्च । षभिःप्रकारैः प्रभवंति रोगाः ॥२४३ ॥ अधिक जल पीने, विषम-अरुचिकर या परिमाणसे अधिक भोजन करने, दिनमें अधिक सोने, रात्रिमें जागने और टट्टी-पेशाबकी बाधा रोकने-इन छह कारणोंसे रोग उत्पन्न होते हैं ॥२४३॥ भुक्तोपविशतस्तुन्दं बलमुत्तानशायिनः । आयुर्वामकटिस्थस्य मृत्युर्धावति धावतः ॥ २४४ ॥ भोजन करके बैठे रहनेसे तौंद बढ़ती है, मुंह ऊपरको करके सीधा सोनेसे बल बढ़ता है, बाई करबट सोनेसे आयु बढ़ती है और दौड़नेसे मृत्यु दौड़ती है—आयु घटती हैं ॥ २४४ ॥ चैतस्थानगमागमौ जिनमते प्रीतिश्च पात्रे रुचि- .. राहारादिसुदानदत्तिकथनं भुक्तिश्च शय्याऽऽसनम् ।। योग्यायोग्यसुवस्तुभक्ष्यकथनं श्रीसोमसेनेन वै। सम्प्रोक्ता बहुधा जिनेन्द्रवचनाद्धर्मप्रदाः सक्रियाः ।। २४५ ॥ जिन मंदिरको आना, यहांसे बापिस घर जाना, जिनमतमें प्रीति करना, पात्रमें प्रेम करना, आहारादि चार प्रकारके दान देना, भोजन करना, सोना, बैठना, योग्य वस्तुका भक्षण करना और
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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