SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सोमसेनभट्टारकविरचित इसके बाद, अपने घरके बीच आंगनमें बनी हुई योग्य लम्बी, चौड़ी, ऊँची और चौकोन वेदीके ऊपर “ ॐ ह्रीं ॥ इत्यादि मंत्र पड़कर वास्तु देवोंका पूजन करे ॥ ६० ॥ तिथिदेवतार्थना ततस्तत्र-ॐ ही कौ प्रशस्तवर्ण सर्वलक्षणसम्पूर्ण मानायुधयुक्त्तिजनसहित यक्षदेव ! इदमयं बलिं गृहाण गृहाण इति प्रतिपदिने यक्षदेवं समचयेत् । द्वितीयायां तिथौ वैश्वानरं, तृतीयायां राक्षसं, चतुर्थी निति, पञ्चम्यां पन्नगं, षष्ठयामसुरं, सप्तम्यां सुकुमारं अष्टम्यां पितृदेवं, नवम्यां विश्वमालिनं, दशम्यां चमरं, एकादश्यां वैरोचनं. द्वादश्यां महाविद्यां त्रयोदश्यां मारदेवं, चतुर्दश्यां विश्वेश्वरं, पर्वान्ते पिण्डभुजं, एवं तत्तद्दिनेषु तिथिदेवता अभ्यर्चयेत् ॥ ६१॥ इसके बाद वहीं पर “ ॐ ह्रीं" इत्यादि मंत्र पढ़कर जिस दिन जो तिथि हो उसी देवताकी पूजा करे । अर्थात् प्रतिपत् ( पड़वा ) के दिन यक्षदेवकी, दौजको वैश्वानरकी, तीजको राक्षसोंकी, चौथको निक्रतिकी, पंचमीको पन्नगकी, छठको असुरकी, सप्तमीको सुकुमारकी, अष्टमीको पितृदेवकी, नवमीको विश्वमालिनीकी, दशमीको चमरकी, एकादशीको वैरोचनकी, द्वादशीको महाविद्याकी, त्रयोदशीको मारेदेवकी, चतुर्दशीको विश्वेश्वरकी, पर्वके अंत दिनको अर्थात् अमावास्या और पूर्णमासीको पिण्डभुजकी पूजा-सत्कार करे ।।६१ ॥ वारदेवतार्चन ततः-ॐ ही कौ प्रशस्तवर्ण सर्वलक्षणसम्पूर्ण यानायुधयुवतिजनसहित आदित्य ! इमं बलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । एवं रवौ रविं, सोमे सोमं, भौमे भौम, बुधे बुध, बृहस्पतौ गुरु, शुक्रे शुक्र, शनौ शनि, एवमर्चयेत् ॥ ६२॥ इसके बाद “ॐ ही ” इत्यादि मंत्र पढ़कर रविवारको सूर्यकी, सोमवारको चन्द्रकी, मंगलको मंगलकी, बुधको बुधकी, बृहस्पतिको बृहस्पतिकी, शुक्रको शुक्रकी, और शनिको शनिकी पूजा करे ॥ ६२॥ ग्रहदेवतार्चन. ततो गृहिणी गृहाभ्यन्तरे पूर्वोक्तसत्यदेवता अर्हदादयः, क्रियादेवता अग्न्यादयः, गृहदेवता धनदाद्यः, कुलदेवताः पद्मावत्यादयः, एता. न्देवानचेयेत् मन्त्रपूर्वकम् । ततो द्वारपालान् पूजयेत् । जलाञ्जलिना पित्रदेवाँस्तर्पयेत् । इति गृहस्थानां नित्यकर्म ॥ ६३ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy