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________________ त्रैवर्णिकाचार । ततो मुकुलितकरः- ॐ दर्पणोद्योतज्ञानप्रज्वलित सर्वलोकप्रकाशक भगवन्नर्हन् ! श्रद्धां मेधां प्रज्ञां बुद्धिं श्रियं बलं आयुष्यं तेज आरोग्यं सर्वशान्ति विधेहि स्वाहा । एतत्पठित्वा सम्प्रार्थ्य शान्तिधारां निपात्य पुष्पाजलिं प्रक्षिप्य चैत्यादिभक्तित्रयं चतुर्विंशतिस्तवनं वा पठित्वा पञ्चाङ्गं प्रणम्य तद्दिव्यभस्म समादाय ललाटादौ स्वयं धृत्वा अन्यानपि दद्यात् ॥ ५७ ॥ १५३ इसके बाद हाथ जोडकर “ ॐ दर्पणोयोत " इत्यादि मंत्र पढ़े, प्रार्थना करे, शान्ति धारा दे, पुष्पांजलि क्षेपण करे, चैत्य वगैरह की तीन भक्ति अथवा चौवीस तीर्थकरोंकी स्तुति पढ़े और पंचांग नमस्कार कर होमकी दिव्य भस्मको लेकर ललाट वगैरह स्थानोंपर लगावे और औरोंकोभी देवे ॥५७॥ इति होमविधिं कृत्वा तत्रस्थां जिनप्रतिमां सिद्धायतनयन्त्राणि पूर्वनिर्मापितजिनगृहाभ्यन्तरे संस्थाप्य पुनः पुनर्नमस्कारं कृत्वा नित्यव्रतं गृहीत्वा देवान्विसर्जयेत् ॥ ५८ ॥ इस तरह होम विधिको करके होम स्थानमें लाकर विराजमान की हुई जिन प्रतिमा को और सिद्धादि यंत्रोंको जिनमन्दिर में स्थापन कर बारबार नमस्कार कर, नित्यव्रत ग्रहण कर, बाकीके सब देवोंका विसर्जन करे ॥ ५८ ॥ क्षेत्रपालादिकार्चन. ॐ ही क्रौ प्रशस्तवर्णाः सर्वलक्षणसम्पूर्णाः स्वायुधवाहनसमेताः क्षेत्रपालाः ! श्रियो गन्धर्वाः किन्नराः प्रेता भूताः सर्वे ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा इमं सार्घ्यं चरुममृतमिव स्वस्तिकं यज्ञभागं गृह्णीत गृहीत । इति क्षेत्रपालादिद्वारपालानभ्यर्चयेत् ॥ ५९ ॥ “ ॐ ह्रीँ ” इत्यादि मंत्र पढ़कर क्षेत्रपालादि द्वारपालोंकी पूजा करे अर्थात् गंधादि अष्टद्रव्यों का अर्ध, नैवेद्य, स्वस्तिक और यज्ञ भाग चढ़ावे ॥५९॥ वास्तुदेवतार्चन. ततो निजगृहाङ्गणमध्यदेशप्रकल्पितायां यथोचितायामविस्तारोत्सेधचतुरस्रवेदिकायां- ॐ ही क्रौं प्रशस्तवर्णाः सर्वलक्षणसम्पूर्णा यानायुधयुवतिजनसहिता वास्तुदेवाः । सर्वेऽपि ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा इदमर्घ्य चरुममृतमिव स्वस्तिकं यज्ञभागं गृह्णीत गृह्णीत | इति वास्तुदेवान् समर्चयेत् ॥ ६० ॥ 2.
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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