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________________ - गर्णिकाचार अर्कैः पलाशैः खदिर्मधरै, बर्बोधिद्रुमैः कस्बुशमीसमिद्भिः । दुर्वाकुशाभ्यां क्रमशो ग्रहाणां, सूर्यादिकानां जुहयात्प्रशान्त्यै ॥ १४९॥ आक, ढाक, खदिर, अपामार्ग, पीपल, काला उंबर, शमी, दूभ और डाभ इन नौ तरहकी समिधासे, एक एकसे, क्रमसे, शान्तिके निमित्त, सूर्यादि नौयहींका हवन करे । भावार्थ-आककी समिधासे सूर्यका, पलासकी लकड़ीसे चन्द्रका इस तरह क्रमसे नौग्रहों का हवन को ॥ १४९॥ अर्केण नश्यति व्याधिः पलाशः कामितप्रदः। खदिरचार्थलाभच अपामार्गोभरिनाशकः ॥ १५० ॥ अश्वत्थेन हरेद्रोम दर्मोदुम्बरभाग्यदः। शमी च पापनाशाय दूर्वा चायुःप्रवद्धिनी ॥ १५१ ॥ आककी लकड़ीसे हवन करनेसे पीड़ा दूर होती है, पलासकी मनचाहे पदायोंको देती है, खदिरसे थनकी प्राप्ति होती है, अपामार्गसे दुष्टोंका नाश होता है, पीपलसे रोग हरे जाते हैं, अभ और उदुंबरसे यश फैलता है, शमी पापोंको नष्ट करनेके लिए होता है और दूभ आयुष्य ( उमर ) बड़ाता है । भावार्थ-इन उक्त समिधाओंसे हक्न करनेसे उक्त कार्य होते हैं ॥ १५ ॥ १५१॥ वस्त्राच्छादन । धौतादिवर्ण प्रमुखादिवर्ण, काञ्चीदुलं नखच्छिन्द्रहस्वम् ।. .. देवाजवनोबलकुन्दद्रीमं, आच्छादनं यज्ञगृहेषु सर्वम् ॥ १५२॥ होमशालामें इस श्लोकों बताये हुए सम्ब सरहके वस्त्र होने चाहिए । १५२ ॥ यदि कुण्डास्त्रयः सन्ति सदा सर्व सामीहितम् ।। पृथनष्टपतं होम्यं आज्यामहसुस समित् ।। ३५३ ।। यदि होम करनेके तीन कुंड हों तो उनमें हाएको जुन बदा भूल, मा, पुष्प और समिधा इन सबकी एक सौ भाठ आहुति दे ॥ १५३ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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