SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 144 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति (2) प्रमत्त पारांचित-निद्रा वाला होने पर। (3) अन्यान्य मैथुन सेवन करने पर। दुष्टपारांचित यह प्रायश्चित पांच कारणों से किया जाता था 14__ (1) व्यक्ति यदि जिस कुल में रहता उसी में भेद डालने का यत्न करता। (2) जो जिसे गण में रहता यदि उसी में भेद डालने का यत्न करता (3) यदि श्रमण हिंसाप्रेक्षी होता–कुल अथवा गण के सदस्यों का वध चाहता। (4) यदि श्रमण छिद्रान्वेषी होता। (5) यदि वह बार-बार प्रश्नावली 15 का प्रयोग करता। इसके अतिरिक्त दुष्ट पारांचित 'दुट्ठ' तब होता जब मुनि, आचार्य, गणधर अथवा शास्त्र की निन्दा करता, उन्हें परेशान करता, उसकी किसी श्रमणी से घनिष्ठता हो जाती या वह राजा की हत्या कर देता अथवा रानी से अवैध सम्बन्ध स्थापित हो जाते। प्रमत्तपारांचित प्रमत्त पारांचित लेने वाले गुरु प्रायश्चित के भागी होते हैं।6-- (1) हस्त कर्म करने वाला। (2) मैथुन का सेवन करने वाला। (3) रात्रि भोजन करने वाला। अन्यान्य मैथुन यह प्रायश्चित तब किया जाता था जब मुनि समलैंगिकता में रत हो जाता था। 17 इसके अतिरिक्त भी प्रायश्चित चार प्रकार के होते हैं18 (1) प्रतिषेवणा प्रायश्चित – अकृत्य का सेवन करने पर प्राप्त होने वाला प्रायश्चित। (2) संयोजना प्रायश्चित – एक जातीय अतिचारों के लिए प्राप्त होने वाला
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy