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________________ 102 • जैन आगम : इतिहास एवं संस्कृति चातुर्याम से संलग्न कर पंच महाव्रत धर्म बना दिया जो चातुर्याम की अपेक्षा कहीं अधिक व्यावहारिक एवं सुबोध था। उत्तराध्ययन सूत्र के तेईसवें अध्ययन में पापित्यिक निर्ग्रन्थ केशी और महावीर के प्रमुख शिष्य इन्द्रभूति गौतम के श्रावस्ती में मिलने तथा आचार विचार के कुछ प्रश्नों पर संवाद होने की बात कही गयी है। इनके वार्तालाप के आधार पर चातुर्याम तथा पंच महाव्रत के मध्य अन्तर स्पष्ट हो जाता है। ____ केशी गौतम इन्द्रभूति से पूछते हैं कि पार्श्व ने चातुर्याम धर्म का उपदेश दिया और महावीर ने पांच व्रतों का, सो क्यों? इसी तरह पार्श्वनाथ ने सचेल सवस्त्र धर्म बतलाया जबकि महावीर ने अचेल वस्त्ररहित धर्म किसलिए बतलाया? इसके उत्तर में इन्द्रभूति ने कहा कि तत्व दृष्टि से चार याम और पांच व्रत में कोई अन्तर नहीं है। केवल युग की विपरीत और कम समझ देखकर ही महावीर ने विशेष शुद्धि की दृष्टि से चार के स्थान पर पांच महाव्रत का उपदेश दिया है। मोक्ष का वास्तविक कारण तो अन्तर्ज्ञान, दर्शन और चरित्र हैं। इन्द्रभूति के उत्तर की यथार्थता देखकर केशी ने पंच महाव्रत स्वीकार किया और इस प्रकार महावीर के संघ के अंग बन गये। भगवान महावीर के श्रमण काल में अनेक पावापत्यीय श्रमण तथा श्रावक रहते थे। भगवान महावीर के माता पिता पार्श्वनाथ की परम्परा को मानने वाले श्रमणोपासक थे। आचारांगसूत्र के अनुसार महावीर के माता पिता ने छहों प्रकार के जीवों की संरक्षा के लिए अपने पापों का अवलोकन किया, गर्हा की, पश्चाताप किया, पापों की स्वीकारोक्ति की आलोचना की, प्रायश्चित किये, अनशन किये तथा कुशाघास पर आमरण अनशन से कायोत्सर्ग किया था। ऐसे अनेक पाश्र्वापत्यीय श्रमण थे जिनका महावीर तथा उनके शिष्यों से मिलना तथा आलाप संलाप हुआ और वह महावीर के संघ में प्रवजित हो गये। इनमें प्रमुख पार्श्वनाथ परम्परा के वह स्थविर भी थे जो राजगृह में महावीर के पास आये तथा जिनकी मूल जिज्ञासा थी कि परिमित लोक में अनन्त रात दिन कैसे हुए। भगवती सूत्र में कालास्यवैशिक पुत्र पाश्र्वापत्यीय श्रमण का उल्लेख है। जो अनेक निर्ग्रन्थ स्थाविरों से तात्विक चर्चा कर समाधान पाते हैं और पर्व परम्परा का विसर्जन कर महावीर की परम्परा को स्वीकार कर लेते हैं।23 ___ भगवान महावीर वाणिज्य ग्राम में थे। पापित्यीय श्रमण गांगेय भगवान के पास आया। उसने जीवों की उत्पत्ति और च्युति के विषय में प्रश्न किये। उसे पूरा समाधान मिला और वह उनका शिष्य बन गया।24 उदक पैढ़ाल पार्श्वनाथ की परम्परा में दीक्षित था। एक बार जब गौतम गणधर नालन्दा में स्थित थे तो वह उनके पास गया। चर्चा की और समाधान पाकर उनका शिष्य हो गया।
SR No.023137
Book TitleJain Agam Itihas Evam Sanskriti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Chaturvedi
PublisherAnamika Publishers and Distributors P L
Publication Year2000
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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