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________________ योग का अर्थ है शक्ति का फैलाना । जैसे शक्ति बिजली में होती है, परन्तु उसे फैलाने के लिए तार न हो तो वह इच्छित स्थान तक नहीं फैल सकती। इसी प्रकार आत्मा में वीर्य है । वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम से 1 वीर्य-शक्ति प्रकट होती है, तब वह योग से मन, वाणी और शरीर में चलती है ! यद्यपि वह सारी शक्ति आत्मा की ही है, मगर मन, वचन और शरीर के योग बिना वह उसी प्रकार नहीं फैल पाती जैसे बिजली की शक्ति तार के बिना नहीं फैलती । प्रत्येक मनुष्य को मन, वाणी और कर्म के तीन योग प्राप्त हैं । अच्छे-बुरे, साहूकार - चोर, धर्मी - अधर्मी, दयालु - कसाई आदि सभी में यह तीन योग हैं। जिस प्रकार बिजली का प्रकाश मिलने पर उसकी सहायता से अच्छे काम भी किये जा सकते हैं और बुरे काम भी किये जा सकते हैं। उसी प्रकार योग का भी इच्छानुसार उपयोग किया जा सकता है और स्वर्ग के सुन्दर मार्ग की ओर भी प्रयाण किया जा सकता है। अच्छे कार्यों में भी मन जाता है और बुरे कार्यों में भी मन जाता है । गौतम स्वामी पूछते हैं- भगवन् ! नरक के जीवों का जब मनोयोग बर्तता है तब वे क्रोधी हैं, मानी है, मायी हैं या लोभी है? उत्तर में भगवान ने फरमाया - चारों प्रकार के हैं। यहां सत्ताईस भंग समझने चाहिएं। इसी प्रकार वचनयोग और काय योग के सत्ताईस भंग समझना । भगवान ने काययोग में भी सत्ताईस भंग कहे हैं। लेकिन रास्ते में जाते हुए जीव में काययोग कभी होता है कभी नहीं होता। ऐसी अवस्था में काययोग में अस्सी भंग न कह कर सत्ताईस भंग क्यों कहे हैं ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि कार्मण शरीर की अपेक्षा जो अस्सी भंग होते हैं लेकिन यहां सिर्फ कार्मण शरीर की ही चर्चा नहीं है, सामान्य रूप से शरीर की चर्चा है । इसलिए सत्ताईस ही भंग कहे हैं। गौतम स्वामी पूछते हैं-भगवन् ! नरक के जीव साकार उपयोग वाले हैं या निराकार उपयोग वाले हैं? यहां साकार उपयोग और निराकार उपयोग का स्वरूप समझ लेना उपयोगी होगा। जैसे हीरा कान्ति द्वारा और मोती पानी द्वारा पहचाना जाता है, उसी प्रकार आत्मा उपयोग द्वारा पहचाना जाता है। उदाहरणार्थ- 'मेरा हाथ' यह सभी कहते हैं, परन्तु हाथ का उपयोग है या इसको समझने वाले का उपयोग है? 'समझने वाले का ।' L हाथ तो हाड़, मांस और रक्त का है। यह कभी रुग्ण होता है, कभी अशक्त होता है, कभी पतला पड़ जाता है, कभी मोटा हो जाता है । बालकपन भगवती सूत्र व्याख्यान ६६
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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