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________________ और श्रुतज्ञान परोक्ष होते हैं और अवधिज्ञान प्रत्यक्ष होता है । मतिज्ञान के प्रताप से वह कर्मों को प्रत्यक्ष देखते हैं । नरक से जीवों को घोर वेदना होती है, ऐसे समय में ज्ञान कैसे रहता है, यह बात अनुभव से कहता हूं। मेरे शरीर में बहुत वेदना हुई थी। मेरा शरीर अग्नि सा जलता था, ठंड का मौसम था, फिर भी कपड़ों के बिना भी गर्मी मालूम होती थी। उस वेदना के समय मेरे मन में जैसी बातें आईं, और जो मैंने संतों को सुनाई, वैसी बातें फिर स्वस्थ होने पर भी नहीं दीख पड़ीं। इसी प्रकार नरक के जीवों को वेदना होने पर भी उनका ज्ञान नहीं जाता । वेदना होना, वेदनीय कर्म का उदय है और ज्ञान का जाना उस वेदना से हाय हाय करना मोहनीय कर्म के उदय का परिणाम है! वेदनीय कर्म का उदय हो और मोहनीय कर्म का क्षयोपशम हो तो ज्ञान कहीं नहीं जाता। मुनि को ऐसा ही हुआ था। उन्हें घोर वेदना के समय में भी ज्ञान था । इसी कारण उन्होंने कहा- यह रोग नहीं हैं, मेरे मित्र हैं। भगवान् फरमाते हैं-हे गौतम! उन्हें अपनी वेदना प्रत्यक्ष दिखाई देती है, इससे उन्हें अवधिज्ञान है और जिनमें ज्ञान नहीं है उन्हें तीव्र अज्ञान है । जिनमें ज्ञान है, उनमें तीन ज्ञान की नियमा है और जिनमें अज्ञान है उनमें तीन अज्ञान की भजना है। गौतम स्वामी पूछते हैं- भगवन् ! तीन ज्ञान में वर्तने वाले नरक के जीव क्रोधी हैं, मानी है, मायी हैं या लोभी हैं? गौतम स्वामी के इस प्रश्न के उत्तर में भगवान फरमाते हैं- हे गौतम! क्रोध, मान, माया और लोभ चारों हैं, लेकिन जो ज्ञानी हैं वे जानते हैं और जो अज्ञानी हैं वे नहीं जानते। यहां सत्ताईस भंग समझना चाहिए । गौतम स्वामी पूछते हैं- भगवन् ! नरक के जीव मनयोगी हैं, वचनयोगी हैं या काययोगी हैं? इसके उत्तर में भगवान ने फरमाया-नरक के जीव तीनों प्रकार के हैं। I योग किसे कहते हैं, यह बात समझ लेने पर धर्म समझने में बड़ी सुविधा होगी। योग का अर्थ है - प्रयुंजन । योगी का योग दूसरा है और यहां उस योग की बात नहीं है। लेकिन मनयोग और वचनयोग के साधने से ही योगी का पद प्राप्त होता है। मनुष्य को मन, वचन और काय यह तीन योग मिले हैं। इनसे योग करना या भोग करना यह अपनी-अपनी इच्छा पर अवलंबित है । ६८ श्री जवाहर किरणावली
SR No.023135
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size19 MB
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