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________________ जैसे सिंचामन ऐरावत आदि के रक्षक देव होते हैं, उसी प्रकार इस सूत्र के रक्षक अनेक देव हैं। जैसे जयकुंजर का उद्देश्य अर्थात् मस्तक सुवर्ण (सोने) में मंडित होता है, इसी प्रकार सूत्र के उद्देशक सुवर्णों से अर्थात् सुन्दर अक्षरों से मंडित हैं। जयकुंजर नाना प्रकार के अद्भुत चरितों वाला होता है अर्थात् अनेक चालों से शत्रु पर आक्रमण करता है अतएव वह नानाविध-अद्भुत चरितों से युक्त है, इसी प्रकार प्रस्तुत भगवती सुत्र में नाना प्रकार के अद्भुत चरित हैं, अर्थात् अनेकानेक चरितों का वर्णन है। हाथी विशाल-काय होता है, इसी प्रकार यह शास्त्र भी विशालकाय है अर्थात् अन्य सभी अंगों की अपेक्षा विस्तृत है। छत्तीस हजार प्रश्न और उनके उत्तर इसमें विद्यमान है। अतः स्थूलता की दृष्टि से भी यह हस्ती के समान है। हाथी चार चरण (पैर) वाला होता है, तो यह सूत्र भी चार चरण (अनुयोग) वाला है। जब अन्य शास्त्रों में प्रायः एक ही अनुयोग होता है, तब इसमें चारों अनुयोग अर्थात् द्रव्यानुयोग, गतितानुयोग, चरणानुयोग और अर्मन्धकथानुयोग हैं। हाथी के दो नेत्र होते हैं, उसी प्रकार प्रकृत शास्त्र रूपी जयकुंजर के भी ज्ञान और चरित्र रूप दो नेत्र हैं। कोई-कोई लोग सिर्फ ज्ञान को सिद्धिदाता मानते हैं, कोई केवल चरित्र को। मगर इस सूत्र में दोनों को ही सिद्धिदाता माना गया है। दोनों में से किसी भी एक के अभाव में मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती। हाथी के मूसल के समान दो दांत होते हैं, जिनसे वह संग्राम में विजय लाभ करता है। इसी प्रकार इस सूत्र में द्रव्यास्तिकनय और पर्यायास्तिकनय रूपी दो सुदृढ़ दंत हैं, जिनके द्वारा प्रतिपक्षियों के समक्ष वह विजयशील है। द्रव्यास्तिकनय और पर्यायास्तिकनय अनेकान्तवाद के मूलाधार हैं और अनेकान्तवाद अजेय है। जैसे हाथी के दो कुंभस्थल होते हैं, वैसे ही इस सूत्र के निश्चयनय और व्यवहारनय रूपी दो कुंभस्थल हैं। हाथी के दो कान होते हैं इसी प्रकार सूत्र रूपी कुंजर के योग और क्षेम रूपी दो कान हैं। (अप्राप्त वस्तु को प्राप्त होना योग कहलाता है और प्राप्त वस्तु की रक्षा होना क्षेम है)। भगवती सूत्र की प्रस्तावना की वचनरचना जयकुंजर की सूंड के समान है और समाप्ति-वचल पूंछ के समान है। काल, आत्मरूप, संबंध, - श्री भगवती सूत्र व्याख्यान ६
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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