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________________ जयकुंजर हाथी उपसर्गनिपात-अव्यय रूप है और भगवती सूत्र भी उपसर्गनिपात-अव्यय रूप है। तात्पर्य यह है कि जयकुंजर एक संग्रामी हाथी है । शत्रुपक्ष की ओर से उस पर उपसर्गों का निपात होता है अर्थात् उसे कष्ट पहुंचाया जाता है, फिर भी जयकुंजर अपने स्वभाव का त्याग नहीं करता है । इसी प्रकार भगवती सूत्र के लिए यह पांचवां आरा उपसर्ग रूप है । जैसे अन्य सब शास्त्रों पर पांचवें आरे रूप उपसर्ग का निपात हुआ, उसी तरह भगवतीसूत्र पर भी उपसर्ग पड़ा। लेकिन यह सूत्र अनेक अग्निकांड होने पर भी बचा रहा है । अतएव यह भी उपसर्गनिपात- अव्यय रूप है । जब भारतवर्ष में साम्प्रदायिक दुरभिनिवेश की प्रबलता थी, मतभेद - सहिष्णुता का नाम मात्र तक नहीं था, शास्त्र और ग्रंथ अग्नि की लपलपाती हुई ज्वालाओं में भस्म कर दिये जाते थे और कही-कहीं तो उनके पढ़ने वाले तक मौत के घाट उतार दिये जाते थे, उस समय में भी यह शास्त्र बचा रहा। ऐसे विकराल संकट - काल में भी इस सूत्र ने अपना स्वरूप नहीं त्यागा । इसके अतिरिक्त प्रकृत सूत्र द्वादशांगी में सम्मिलित है और द्वादशांगी श्रुत, अर्थ की अपेक्षा शाश्वत है-उसका कभी अभाव नहीं होता। अतएव पंचम आरा आदि रूप उपसर्ग आने पर भी यह सूत्र सदा अव्यय - अविनश्वर है । ‘उपसर्ग-निपात–अव्यय' पद की संघटना व्याकरण के अनुसार दूसरे प्रकार से भी होती है। जैसे जयकुंजर उपसर्गों का निपात होने पर भी अव्यय रहता है, उसी प्रकार भगवती सूत्र उपसर्ग निपात और अव्यय से युक्त है अर्थात् इसमें उपसर्गों का, निपातों का तथा अव्ययों का प्रयोग किया गया है। 'जयकुंजर का शब्द सुनकर प्रतिपक्षी घबड़ा उठते हैं, अतएव जयकुंजर घन और उदार शब्द वाला होता है। इसी प्रकार भगवती सूत्र के शब्द सुनकर भी प्रतिपक्षी घबड़ा जाते हैं । अतएव यह सूत्र भी घन और उदार शब्दों वाला है । जैसे जयकुंजर पुरुषलिंग सहित होता है, इसी प्रकार प्रकृत भगवतीसूत्र भी लिंग और विभक्ति से युक्त है। जैसे जयकुंजर सदा-ख्यात होता है उसी प्रकार यह सूत्र भी सदा - ख्यात है । अर्थात् - इस सूत्र के सभी आख्यान - कथन स्वरूप हैं। जैसे जयकुंजर सुलक्षण वाला होता है उसी प्रकार पकृत सूत्र भी सुलक्षण हैं, अर्थात् इसमें अनेक पदार्थों के जीवादि तत्वों के समीचीन लक्षण विद्यमान हैं। श्री जवाहर किरणावली ८
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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