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________________ और वीर है, उसी प्रकार भगवान् समस्त पुरुषों में अधिक पराक्रमी और वीर थे। इसी अभिप्राय को प्रकट करने के लिए सिंह की उपमा दी गई है। भगवान् में क्या शौर्य था? कैसी वीरता थी? जिसके कारण उन्हें सिंह की उपमा दी गई है? यह बतलाने के लिए आचार्य कहते हैं। जिस समय भगवान् दीक्षा लेकर अनन्त ज्ञान आदि में प्रवृत्त हुए तब की तो बात ही निराली है। उस समय उनका पराक्रम शब्दों द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता। लेकिन जिस समय भगवान् बालक थे तब भगवान के पराक्रम की इन्द्र ने प्रशंसा की। इन्द्र ने कहा-'महावीर की शूरवीरता की तुलना नहीं हो सकती। उनकी बराबरी कोई नहीं कर सकता। 'भगवान् अनुपम वीर हैं। मनुष्य की तो विसात ही क्या है, देव और दानव भी उन्हें भयभीत नहीं कर सकता। इन्द्र द्वारा की हुई भगवान् महावीर की इस प्रशंसा पर कुछ विरुद्ध प्रकृति वाले देवों को प्रतीति नहीं हुई। यह प्रशंसा उन्हें रुची भी नहीं। वे कहने लगे-मनुष्य में इतनी शक्ति कैसे हो सकती है? कहां देव और दानव और कहां मनुष्य ! इस प्रकार सोच कर उन्होंने भगवान् महावीर को पराजित करने का विचार किया। उनमें से एक देव, जहां महावीर बालकों के साथ खेल रहे थे वहां आया। देव बालक बन कर भगवान् महावीर के साथ खेलने लगा। उस समय जो खेल हो रहा था, उसमें वह नियम था कि हारने वाला बालक, जीतने वाले को अपने कन्धे पर चढ़ावे। भगवान् महावीर और बालक रूपधारी देव का खेल हुआ। देव हार गया। नियमानुसार देव ने महावीर को कन्धे पर बिठलाया। अपने कंधे पर बिठलाकर देव ने अपना शरीर बढ़ाना शुरू किया। देव का शरीर बढ़ते-बढ़ते बहुत ऊंचा हो गया। यह अलौकिक विस्मयजनक एवं भयोत्पादक दृश्य देखकर सब बालक बुरी तरह भयभीत हो गये। सब के सब वहां से भाग खड़े हुए। भागते-भागते वे सब महाराज सिद्धार्थ और महारानी त्रिशला के पास पहुंचे। इधर देव आकाश तक बढ़ता ही चला जाता था। बालकों ने यह घटना जब महाराज सिद्धार्थ को सुनायी तो वह अवाक् रह गये और भयभीत हुए। मगर इतना ऊंचे उठने पर भी महावीर के चेहरे पर भय का एक भी चिह्न प्रकट न हुआ। उन्हें न घबराहट हुई, न चिन्ता हुई और न भय लगा। देवता ने अपना शरीर बढ़ाते-बढ़ाते जब आकाश तक पहुंचा दिया तब महावीर ने सहज रीति से अपनी वज्र-सी मुट्ठी का धीरे से उस देव पर प्रहार श्री भगवती सूत्र व्याख्यान ६१
SR No.023134
Book TitleBhagwati Sutra Vyakhyan Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Aacharya
PublisherJawahar Vidyapith
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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