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________________ 7. प्रा. जस्स जीहा वसीहूआ, सो परमो पुरिसो । सं यस्य जिह्वा वशीभूता स परमः पुरुषः । हि. जिसकी जीभ वश में है, वह उत्तम पुरुष है । 8. प्रा. नारीओ जोण्हाए रमेन्ति । सं. नार्यो ज्योत्स्नायां रमन्ते । हि. नारियाँ चाँदनी में खेलती हैं / प्रा. छुहाए समाणा वेयणा नत्थि । सं. क्षुधया समाना वेदना नास्ति । हि. भूख समान कोई वेदना नहीं है । 10. प्रा. पंडवाणं भज्जा दोदई सव्वासु इत्थीसुं उत्तमा महासई अहेसि । सं. पाण्डवानां भार्या द्रौपदी सर्वासु स्त्रीषूत्तमा महासत्यासीत् । हि. पांडवों की पत्नी द्रौपदी सभी स्त्रियों में उत्तम महासती थी । 11. प्रा. वाणस्सईणं पि सन्ना अस्ति, तओ मट्टिआए रसं च आहरेज्जा । सं. वनस्पतीनामपि संज्ञाः सन्ति, तत उदकं मृत्तिकायाः रसं चाऽऽहरेयुः । हि. वनस्पतियों में भी संज्ञाएँ होती हैं अतः पानी और मिट्टी के रस का आहार करती हैं । 12. प्रा. सज्जणा पइण्णाहिंतो कहंपि न चलन्ति । 9. सं. सज्जनाः प्रतिज्ञाभ्यः कथमपि न चलन्ति । हि. उत्तम पुरुष प्रतिज्ञा से किसी भी प्रकार से विचलित नहीं होते हैं । 13. प्रा. इत्थीओ सज्जाहिन्तो उट्ठन्ति, आवासयाइं च किच्चाइं कुणन्ति । सं. स्त्रियः शय्याभ्यः उत्तिष्ठन्ति, आवश्यकानि च कृत्यानि कुर्वन्ति । हि. स्त्रियाँ शय्या में से उठती हैं और आवश्यक कार्य करती हैं । 14. प्रा. सासूए ण्हूसाए उवरि, वहूइ य सासूअ अवरिं अईव पीई अत्थि । सं. श्वश्र्वाः स्नूषायाः उपरि, वध्वाश्च श्वश्वा उपर्यतीव प्रीतिरस्ति । हि. सासू का पुत्रवधू (बहू) पर और बहू का सासू पर अतीव स्नेह है। 15. प्रा. दिवहो निसं, निसा य दिणं अणुसरेइ । सं. दिवसो निशां, निशा च दिनमनुसरति । हि. दिन रात्रि का, रात्रि दिन का अनुसरण करती है । 16. प्रा. जणा रिद्धीए गव्विट्ठा पाएण हवन्ति । सं. जना ऋद्ध्या गर्विष्ठाः प्रायो भवन्ति । हि. मनुष्य प्रायः ऋद्धि से अभिमानी बनते हैं । ६६
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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