SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाठ - 16 प्राकृत वाक्यों का संस्कृत एवं हिन्दी अनुवाद 1. प्रा. जस्स जओ आइच्चो उदेइ, सा तस्स होइ पुवा दिसा, जत्तो य अत्थमेइ सा उ अवरादिसा नायव्वा, दाहिणपासम्मि य दाहिणा दिसा, उत्तरा उ वामेण । सं. यस्य यत आदित्य उदेति, सा तस्य भवति पूर्वा दिग्, यतश्चाऽस्तमेति, सा त्वपरा दिग् ज्ञातव्या, दक्षिणपार्श्वे च दक्षिणा दिग्, उत्तरा तु वामेन | हि. जिसके जिस बाजू से सूर्य उगता है, वह उसकी पूर्व दिशा होती है, जिस तरफ अस्त होता है, वह पश्चिम दिशा जाननी, दायीं तरफ दक्षिण दिशा और बायीं तरफ उत्तर दिशा जाननी । 2. प्रा. किवाए विणा को धम्मो ? | सं. कृपया विना को धर्म: ? | हि. दया बिना कौनसा धर्म है ? | 3. प्रा. पंडवाणं सेणाइ दुज्जोहणस्स सेणाए सह जुज्झं होत्या, तम्मि जुद्धे पंडवाणं जयो आसि । सं. पाण्डवानां सेनायाः दुर्योधनस्य सेनया सह युद्धमभवत्, तस्मिन् युद्धे पाण्डवानां जय आसीत् । हि. पाण्डवों की सेना का दुर्योधन की सेना के साथ युद्ध हुआ, उस युद्ध में पाण्डवों की जय (जीत) हुई। 4. प्रा. कोसा वेसा सब्बासु कलासु निउणा, नच्चम्मि उ विसेसेण कुसला । सं. कोशा वेश्या सर्वासु कलासु निपुणा, नृत्ये तु विशेषेण कुशला | हि. कोशा वेश्या सभी कलाओं में कुशल (थी), परन्तु नृत्य कला में विशेष कुशल (थी)। 5. प्रा. सव्वा कला धम्मकला जएइ। सं. सर्वाः कलाः धर्मकला जयति ।। हि. धर्मकला सभी कलाओं को जीतती है। प्रा. सबा कहा धम्मकहा जिणेइ । सं. सर्वाः कथाः धर्मकथा जयति । . हि. धर्मकथा सभी कथाओं को जीतती है। - - 3 - ६५ -
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy