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________________ संपादक (हिन्दी आवृत्ति) की कलम से विश्व में जितने भी धर्म है, उन धर्मों का मौलिक साहित्य किसी न किसी भाषा से जुड़ा हुआ है । क्रिश्चियन धर्म का मूलभूत साहित्य Bible अंग्रेजी भाषा में है । इस्लाम धर्म का मूलभूत साहित्य उर्दु भाषा में है । हिन्दुओं के मुख्य गुंथ वेद-पूराण-उपनिषद् आदि संस्कृत भाषा में है । बौद्धों के त्रिपीटक पाली भाषा में हैं, उसी प्रकार जैनों के मूल आगम वर्तमान में विद्यमान आचारांग आदि ग्यारह अंग प्राकृत भाषा में है, जबकि बारहवां अंग दृष्टिवाद संस्कृत भाषा में था । वर्तमान में श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ को सर्वमान्य 45 आगम प्राकृत भाषा में ही है । उन आगमों पर उपलब्ध निर्युक्तियाँ-भाष्य-चूर्णि आदि भी प्राकृत भाषा में ही है। हाँ ! उन आगमों के गंभीर रहस्यों को जानने समझने के लिए पूर्वाचार्य महर्षियों ने संस्कृत भाषा में टीकाओं की भी रचनाएं की है । वर्तमान में दो अंगों पर शीलांकाचार्य और नौ अंगों पर अभयदेवसूरिजी म. की टीकाएं संस्कृत भाषा में विद्यमान है । श्रावक जीवन के आचारप्रधान ग्रंथ भी प्राकृत भाषा में ही है। सुबहशाम करने योग्य प्रतिक्रमण के सभी सूत्रों की भाषा प्राकृत ही है । छ आवश्यक के सभी सूत्र प्राकृत भाषा में है । भागवती दीक्षा अंगीकार करने के बाद जिन आवश्यक और दशवैकालिक सूत्रौं के योगोद्वहन किए जाते है, उनकी भी भाषा प्राकृत ही है । बड़े ही दुःख की बात है कि जैनों के प्रधान सूत्र प्राकृत भाषा में होने पर भी उस भाषा को जानने समझनेवाले, श्रावक वर्ग में तो नहींवत् ही है । इस प्रकार प्राकृत भाषा का बोध साधु-साध्वी वर्ग तक सीमित हो गया है । भाषा के यथार्थ बोध के अभाव में जब वे सूत्र कंठस्थ किए जाते है तो या तो उनका सही उच्चारण नहीं हो पाता है- अथवा सही उच्चारण होने पर भी उनको बोलने में विशेष आनंद नहीं आता है । भाषा बोध के अभाव में प्रतिक्रमण आदि की क्रियाएं निरस बनती जा रही है । कहीं-कहीं क्रियाएं हो रही हैं, परंतु उसका आनंद चेहरे पर नजर नहीं आ रहा हैं ।
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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