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________________ 9. प्रा. मेरुम्मि असुरा असुरिंदा देवा देविन्दा य पहुणो महावीरस्स जम्मस्स महोसवं कुणन्ति । सं. मेरावसुरा असुरेन्द्रा देवा देवेन्द्राश्च प्रभोर्महावीरस्य जन्मनो महोत्सवं कुर्वन्ति । हि. मेरुपर्वत पर दानव, दानवेन्द्र, देव और देवेन्द्र प्रभु महावीर के जन्म का महोत्सव करते हैं। 10. प्रा. पक्खीसु के उत्तमा संति ? सं. पक्षीषु के उत्तमाः सन्ति ? हि. पक्षियों में कौन उत्तम हैं। 11. प्रा. अग्गिसि पाओ वरं, न उण सीलेण विरहियाणं जीविअं। सं. अग्नौ पातो वरं:रं, न पुनः शीलेन विरहितानां जीवितम् । हि. अग्नि में गिरना श्रेष्ठ (अच्छा), परन्तु शील से रहित (व्यक्ति) का जीवन अच्छा नहीं। 12. प्रा. साहूणं सच्चं सीलं तवो य भूसणमत्थि । सं. साधूनां सत्यं शीलं तपश्च भूषणमस्ति । हि. सत्य, शील और तप साधुओं का आभूषण है। प्रा. मूढा पाणिणो इमस्स असारस्स संसारस्स सरुवं न जाणिज्ज । सं. मूढाः प्राणिनोऽस्याऽसारस्य संसारस्य स्वरूपं न जानन्ति । हि. अज्ञानी जीव इस असार संसार के स्वरूप को नहीं जानते हैं। 14. प्रा. जं कल्ले कायलं, तं अज्जच्चिअ कायदं । सं. यत् कल्ये कर्तव्यं , तदद्यैव कर्तव्यम् । हि. जो (कार्य) आगामी दिन करना है, वह आज ही करना चाहिए । 15. प्रा. अमूसुं तरुसु कवी वसंति । सं. अमीषु तरुषु कपयो वसन्ति । हि. इन वृक्षों पर बंदर रहते हैं । 16. प्रा. हे सिसु ! तं दहिंसि बहुं आसत्तो सि । सं. हे शिशो ! त्वं दनि बवासक्तोऽसि । हि. हे बालक ! तू दही में बहुत आसक्त है । 17. प्रा. साहवो परोवयाराय नयराओ नयरंसि विहरेइरे । सं. साधवः परोपकाराय नगरान् नगरे विहरन्ति । हि. साधु परोपकार के लिए एक नगर से दूसरे नगर में विहार करते हैं। - -४७
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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