SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्र. हिन्दी प्राकृत संस्कृत 13. संघ धर्म के विरुद्ध संघो धम्मस्स विरुद्धं | सङ्घो धर्मस्य विरुद्धं न सहन नहीं करता है || न सहइ । सहते । 14/धार्मिक व्यक्ति पापों | धम्मिओ जणो धार्मिको जनः से डरता है। | पावेहिन्तो डरइ । | पापेभ्यस्त्रस्यति। 15. किसी का धन हरण | कासइ धणस्स हरणं | कस्यचिद् धनस्य हरणं करना पाप है। | पावं अत्थि । पापमस्ति। 16.जो जिनवचन का जो जिणस्स वयणं | ये जिनस्य उल्लंघन करते हैं, | अइक्कमेन्ति | वचनमतिक्रमन्ते, वे सुख नहीं पाते हैं । ते सुहं न पावेन्ति । ते सुखं न प्राप्नुवन्ति । 17/तू विनय से अच्छी |तुं विणएण सुट्ठ | त्वं विनयेन सुष्टु तरह शोभता है। | छज्जसे । शोभसे। .18./उसको धिक्कार हो |तं धिद्धि, सो सव्वं तं धिर धिक, सः सर्वान् क्योंकि वह सब की | निंदइ । निन्दति । निंदा करता है। 19. वह धान्य बेचता है | सो धन्नं विक्कइ, सः धान्यं विक्रीणाति, और बहुत द्रव्य बहुं च दव्वं विढवेइ । बहुं च द्रव्यमुपार्जयति । कमाता है। 20 तू निष्कारण उसकी | तुं तं मुहा निंदेसि । त्वं तं मिथ्या निन्दसे । निंदा करता है। 21, शिष्य हमेशा सूत्रों । | सीसा सया सुत्ताणं |शिष्याः सदा के अध्ययनों का । अज्झयणाई सूत्राणामध्ययनानि पुनरावर्तन करते हैं । | परावट्टन्ति । परावर्तन्ते । 22 बालक को दूध वच्छस्स दुद्धं रुच्चइ || वत्साय दुग्धं रोचते । पसंद है। - ३१ BA
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy