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________________ क्र.| हिन्दी । प्राकृत | संस्कृत 2. सिंह के शब्दों से सिंघस्स सद्देण जणाणं सिंहस्य शब्देन जनानां मनुष्यों के हृदय | हिययाइं कंपेन्ति । हृदयानि कम्पन्ते । काँपते हैं। 3. साधुओं का समुदाय | समणाणं संघो श्रमणानां सङ्घो जिनेश्वर के साथ जिणेण सह जिनेन सह मोक्ष में जाता है। मोक्खं गच्छइ । मोक्षं गच्छति । 4. मूर्ख चारित्र की श्रद्धा | मुरुक्खा चस्तिं न मूर्खाचारित्रं न नहीं रखते हैं। | सद्दहेन्ति । श्रद्दधति । 5. जीवों और अजीवों |जीवाणं अजीवाणं च जीवानामजीवानां च का प्रकाशक | पयासगं किं अत्थि ? |प्रकाशकं किमस्ति ? कौन है ? 6. | जो चारित्र की श्रद्धा |जो चास्तिं सद्दहेइ, सो | यश्चारित्रं श्रद्दधाति स करता है, वह भाव भावत्तो सावगो अस्थि । | भावतः श्रावकोऽस्ति । से श्रावक है। 7. वह घर से निकलता | सो घस्तो निग्गच्छइ, स ग्रहानिर्गच्छति, है और साधु बनता है || समणो य होइ । श्रमणश्च भवति । 8. पश्चाताप से पाप नष्ट | पच्छायावत्तो पावाइं पश्चातापतः पापानि होते हैं। नस्सन्ति । नश्यन्ति । 9. शिष्य उपाध्याय के । | सीसा उवज्झायाउ शिष्या पास अध्ययन | अज्झयणं भणेन्ति । | उपाध्यायादध्ययनं पढ़ते हैं। भणन्ति । 10.जो न्यायमार्ग का जो नायमग्गं उल्लंघन करता है, | अइक्कमइ, न्यायमार्गमतिक्राम्यति, वह दुःख पाता है। सो दुहं पावइ । स दुःखं प्राप्नोति । 11. राजा काव्यों द्वारा निवो कव्वेहिं विबुहे नृपः काव्यैर्विबुधान् पंडितों की परीक्षा । परिक्खइ । परीक्षते। करता है। 12. बाघ से मनुष्य वग्घत्तो जणो बिहेइ । | व्याघ्राज्जनो बिभेति । डरता है। यो - 30
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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