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________________ भणति राजन् ! लाभाः खलु तव सुलब्धाः, यस्मिन्नेवं दयावान्, पूजां कृत्वा क्षमयित्वा गतः ।। हिन्दी अनुवाद जैसे-जैसे मांस रखते जाते हैं, वैसे-वैसे कबूतर का वजन बढ़ता जाता है, यह जानकर राजा स्वयं ही तराजू में बैठ जाते हैं । (175) अहो अहो ! हे राजन् ! आपने ऐसा साहस कैसे किया ? इस प्रकार (सभी लोग बोलने लगे), सचमुच यह तो आकस्मिक है, अतः अतिभारीकबूतर तराजू में तुलता नहीं है । (176) उसी समय वहाँ दिव्यरूपधारण करनेवाले देव ने अपने स्वरूप को प्रगट किया । कहा - हे राजन् ! आप दयालु हो इसलिए आपने सभी लाभ प्राप्त किए हैं, इस प्रकार पूजा करके क्षमायाचना करके (देव) गया ।
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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