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________________ मेघरथेन भणितम्-यावतिकं पारापतस्तुल्यते, तावतिकं मांसं मम शरीराद् गृहाण । 'एवं भवतु' इति भणति (श्येनः) श्येनवचनेन च राजा पारापतं तुलायामारुह्य, द्वितीयपार्श्वे निजकं मांसं छेत्वाऽऽरोहयति । ... हिन्दी अनुवाद मेघरथ राजा कहता है, - 'भूख को शांत (दूर) करने के लिए तुझे मैं दूसरा मांस देता हूँ, परन्तु कबूतर को छोड़ दो। __ बाजपक्षी कहता है - मैं स्वयं मृत्यु प्राप्त जीव का मांस नहीं खाता हूँ, लेकिन मैं काँपते हुए जीव को मारकर उसका मांस खाता हूँ। मेघरथ राजा ने कहा- तराजू में जितना कबूतर का वजन होगा, उतना मांस मेरे शरीर में से तू ग्रहण कर | 'हाँ ! मुझे मंजूर है ।' बाजपक्षी ने कहा । बाजपक्षी के वचन से राजा कबूतर को एक तराजू में रखकर, दूसरी तरफ अपना मांस निकालकर (काटकर) रखते हैं । प्राकृत 'जह 2जह छुभेइ मंसं, तह तह 'पारावओ बहु तुलेइ । 1°इअ'जाणिऊण 12राया, 15आरुहइ 13सयं 14तुलाए उ ।।175।। 'हा ! हा ! 2त्ति नरवरिंदा ! 'कीस इमं साहसं ववसियं ? ति । उप्पाइयं रवु एयं, 12न तुलइ पारेवओ"बहुयं ।। 176।। एयम्मि देसयाले देवो दिव्वरूवधारी दरिसेइ अप्पाणं, भणइ-रायं ! लाभा हु ते सुलद्धा जंसि एवं दयावंतो, पूयं काउं खमावेत्ता गतो ।। वसुदेवहिंडीए प्रथमखण्डे द्वितीयभागे संस्कृत अनुवाद यथा यथा मांसं क्षिपति, तथा तथा पारापतो बहु तोलयति । इत्ति ज्ञात्वा राजा, स्वयं तु तुलायामारुह्यति ||17511 हा हा ! इति नरवरेन्द्रा ! कस्मादिमं साहसं व्यवसितमिति ? | ___ औत्पातिकं खल्वेतत्, पारापतो न तोलयति बहुकम् ||176।। एतस्मिन् देशकाले देवो दिव्यरूपधारी दर्शयत्यात्मानम्, १८१
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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