SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (4) निम्ममो भिक्खू चरे प्राकृत 'कयरे 'मग्गे 'अक्खाते, 'माहणेण 'मतीमता ? | 7 अंजु 'धम्मं 'जहातच्चं, "जिणाणं तं 12 सुणेह भे 11 ।।95।। (4) (निर्ममो भिक्षुश्चरेत्) संस्कृत अनुवाद माहनेन मतिमता, कतरे मार्गा आख्याता: ? । जिनानामृजुं धर्मं, याथातत्थं तं भो ! श्रृणु ||95|| हिन्दी अनुवाद पूज्य श्रीसुधर्मास्वामीजी श्रीजंबूस्वामी को उद्देशकर उपदेश देते हैं कि 'आरम्भ - परिग्रहादि में आसक्त लोगों का संग छोड़कर साधुओं को निर्ममत्व भाव में रहना चाहिए । 44 हन् = मारो नहीं इस प्रकार कहनेवाले केवलज्ञानी श्रीमहावीरस्वामी ने कितने मार्ग बताये हैं ? अरिहंत भगवन्तों का ऋजु सरलता रूप धर्म सत्यार्थ है, हे भविक ! तुम उसे सुनो। (95) प्राकृत 'माहणा±खत्तिया 'वेस्सा, 'चंडाला 'अदु 'बोक्सा | 7 एसिया 'वेसिया 'सुद्दा, 10जे य 11 आरंभणिस्सिया | 196 || 12परिग्गहनिविट्ठाणं, 14वेरं 13तेसिं "पवड्ढई । 17 आरंभसंभिया "कामा, 20न 16 ते 19 दुक्खविमोयगा ||97 || 1 आधायकिच्च 'माहेउं, 'नाइओ 'विसएसिणो । 'अन्ने 'हरति 'तं वित्तं, 'कम्मी "कम्मेहिं 11 किच्चति ।। 98 ।। 'माया 'पिया 'हुसा भाया, 'भज्जा 'पुत्ता य 'ओरसा । 13नालं 'ते "तव 12 ताणाय, "लुप्पंतस्स 'सकम्मुणा ।। 99 ।। एयमट्टं सपेहाए, परमट्ठाणुगामियं । निम्ममो निरहंकारो, चरे भिक्खू जिणाहियं ।।100।। १५५ सूत्रकृताङ्ग-द्वितीयश्रुतस्कन्धे
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy