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________________ हि. सचमुच पुरुष का पेट भरनेवाला आहार बत्तीस कवल कहा है और स्त्री का अठ्ठाईस कवल जानना । 15. प्रा. अट्ठावीसं लक्खा, अडयालीसं च तह सहस्साइं । सव्वेसि पि जिणाणं, जईण माणं विणिद्दिट्ठे ||73|| सं. सर्वेषामपि जिनानां यतीनां मानम्, अष्टाविंशतिर्लक्षाण्यष्टचत्वारिंशच्च तथा सहस्राणि विनिर्दिष्टम् ||73|| हि. सभी जिनेश्वर भगवन्तों के साधुओं का प्रमाण अट्ठाईस लाख और अड़तालीस हजार बताया है । 16. प्रा. पढमे न पढिआ विज्जा, बिईए नज्जियं धणं । तईए न तवो तत्तो, चउत्थे किं करिस्सइ ? ||74|| सं. प्रथमे विद्या न पठिता, द्वितीये धनं नाऽर्जितम् । तृतीये तपो न तप्तं चतुर्थे किं करिष्यति ? ||74|| हि. (जिसने ) प्रथम वय में विद्या नहीं पढ़ी, दूसरी वय में धन उपार्जन नहीं किया, तीसरी वय में तप नहीं किया, (वह) चौथी वय में क्या करेगा ? 17. प्रा. सत्तो सद्दे हरिणो, फासे नागो रसे य वारियरो | किवणपयंगो रूवे, भसलो गंधेण विणट्टो ||75 || समास विग्रह :- किवणो य एसो पयंगो किवणपयंगो (कर्मधारयः) । सं. शब्दे सक्तो हरिणः, स्पर्शे नागो, रसे च वारिचरः । रूपे कृपणपतङ्गो, गन्धेन भ्रमरो विनष्टः । हि. शब्द ( गीत ) में आसक्त हिरन, स्पर्श में आसक्त हाथी, रस में आसक्त मछली, रूप में आसक्त कृपण पतङ्गा और गन्ध में आसक्त भौंरा नष्ट हुआ । 18. प्रा. पंचसु सत्ता पंच वि, णट्ठा जत्थागहिअपरमट्ठा । एगो पंचसु सत्तो, पजाइ भस्संतयं मूढो ||7611 समास विग्रह :- परमो य एसो अट्ठो परमट्ठो (कर्मधारयः) । णाइं गहिओ परमट्ठो जेहिं ते अगहियपरमट्ठा | ( बहुव्रीहिः) । भस्सं अंते जस्स तं भस्संतं, तस्स भावो भस्संतय, तं भस्संतयं (बहुव्रीहिः) । सं. यत्राऽगृहीतपरमार्थाः पंचसु सक्ताः पञ्चापि नष्टाः । पञ्चसु सक्तः, एको मूढो भस्मान्ततां प्रयाति ||76|| १४१
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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