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________________ सं. सज्जनाः दुःखपतिता अप्यसत्यवचनं न ब्रुवन्ति । 3. हि. विद्यार्थियों को प्रातःकाल में जल्दी उठकर माता, पिता अथवा गुरु भ. को नमस्कार करके अपना अध्ययन करना चाहिए । प्रा. विज्जत्थिणो पच्चूसे सिग्छ उडिऊण पियरे गुरुं वा नमंसित्ता अप्पकरं अज्झयणं पढेज्ज । समास विग्रह :- माया य पिया य पियरा, ते पियरे (एकशेषः) । सं. विद्यार्थिनः प्रत्यूषे शीघ्रमुत्थाय पितरौ गुरुं वा नमस्कृत्याऽऽत्मीयमध्ययनं पठेयुः । 4. हि. संसार के दुःखों को देखकर वह संसार से निर्वेद पाता है। प्रा. संसारदुहाइं पासित्ता सो संसारत्तो निविज्जइ । समास विग्रह :- संसारस्स दुहाइं संसारदुहाई, ताई संसारदुहाई (षष्ठीतत्पुरुषः)। सं. संसारदुःखानि दृष्टवा स संसारान् निर्विद्यते । 5. हि. उस बालिका ने हाथरूपी कमल द्वारा राजा के भाल में तिलक किया। प्रा. सा बाला हत्थकमलेण रायस्स ललाडे तिलयं करीअ । समास विग्रह :- हत्थो एव कमलं हत्थकमलं, तेण हत्थकमलेण (अवधारणपूर्वपदकर्मधारयः)। सं. सा बाला हस्तकमलेन राज्ञो ललाटे तिलकमकरोत् । 6. हि. किया है निदान जिसने उनको बोधि की प्राप्ति कहाँ से होगी ? प्रा. कयनियाणाणं तेसिं बोहिलाहो कत्तो हवेज्ज ? | समास विग्रह :- कयं नियाणं जेहिं ते कयनियाणा, तेसिं कयनियाणाणं (बहुव्रीहिः) । बोहिणो लाहो बोहिलाहो (षष्ठी तत्पुरुषः) । सं. कृतनिदानानां तेषां बोधिलाभः कथं भवेत् ? | 7. हि. तीर्थंकर गम्भीर वाणी द्वारा समवसरण में देव, दानव और मनुष्यों की सभा में देशना देते है और वह (देशना) सुनकर भव्यजीव दर्शन, ज्ञान और चारित्र ग्रहण करते हैं और आहाररहित (अणाहारी) मोक्षपद प्राप्त करते हैं। प्रा. तित्थयरो गंभीरवायाए समोसरणंमि देवदाणवमणूसपरिसाए देसणं देइ, तं च सुणित्ता भन्दा जीवा दंसणनाणचरिताइंगिण्हन्ति, अणाहारं च मोक्खपयं पावन्ति । १२३
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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