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________________ हि. क्षमा रखनी चाहिए और क्षमा करनी चाहिए, शान्त बनना चाहिए और शान्त करना चाहिए । जो उपशान्त बनता है उसकी आराधना है, जो उपशान्त नहीं बनता है उसकी आराधना नहीं है अतः स्वयं अवश्य उपशान्त बनना चाहिए। 13. प्रा. एरिसा कन्नगा परस्स दाउण अप्पणो गेहाओ किं निस्सारिज्जइ ? सव्वहा न जुत्तमेयं । सं. ईदृशी कन्या परस्मै दत्वाऽऽत्मनो गृहात् किं निस्सार्येत ? सर्वथा न युक्तमेतद् । हि. ऐसी कन्या दूसरे को देकर अपने घर से क्यों बाहर निकालें ? यह सर्वथा योग्य नहीं है। 14. प्रा. अहो कटुं कटुं वासुदेवपुत्तो होऊण सयलजणाणं मणवल्लहं कणिटुं भायरं विणासेहामि । सं. अहो कष्टं कष्टं वासुदेवपुत्रो भूत्वा सकलजनानां मनोवल्लभं कनिष्ठं भ्रातरं विनाशयिष्यामि ।। हि. अहो दुःख है दुःख है कि वासुदेव का पुत्र होकर सभी लोगों के मन को प्रिय छोटे भाई (लघु भ्राता) का मैं विनाश करूंगा। 15. प्रा. हेमचंदसूरिणो पासे देवाणं सरूवं मुणिउण हं सव्वत्थ वि तित्थयराणं मंदिराई कराविस्सामि त्ति पइण्णं कुमारवालनरिंदो कासी । सं. हेमचन्द्रसूरेः पार्श्वे देवानां स्वरूपं ज्ञात्वाऽहं सर्वत्रापि तीर्थकराणां मन्दिराणि कारयिष्यामीति प्रतिज्ञां कुमारपालनरेन्द्रोऽकार्षीत्) हि. श्रीहेमचन्द्रसूरि. जी के पास देवों का स्वरूप जानकर ''मैं सर्वत्र तीर्थंकरों के मन्दिर करवाऊँगा" ऐसी प्रतिज्ञा कुमारपाल राजा ने की। 16. प्रा. सो पइदिणं अब्मस्संतो जिणधम्मं, पज्जुवासंतो मुणिजणं, परिचिंततो जीवाजीवाइणो नव पयत्थे, रक्खन्तो रक्खाविन्तो य पाणिगणं, बहुमाणंतो साहम्मिए जणे, सव्वायरेण पभावंतो जिणसासणं कालं गमेइ । स प्रतिदिनमभ्यस्यन् जिनधर्म , पर्युपासमानो मुनिजनं, परिचिन्तयन् जीवाजीवादीन् नव पदार्थान् , रक्षन् रक्षयन् च प्राणिगणं, बहुमानयन् साधर्मिकान् जनान्, सर्वादरेण प्रभावयन् जिनशासनं कालं गमयति । १०९ श्री
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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