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________________ पाठ - 22 प्राकृत वाक्यों का संस्कृत एवं हिन्दी अनुवाद 1. प्रा. पावकम्मं नेव कुज्जा न कारवेज्जा | सं. पापकर्म नैव कुर्यात् न कारयेत् । हि. पापकर्म नहीं करना और नहीं कराना चाहिए । 2. प्रा. पाइयकळ लोए कस्स हिययं न सुहावेइ । सं. प्राकृतकाव्यं लोके कस्य हृदयं न सुखयति । हि. प्राकृतकाव्य लोक में किसके हृदय को सुख नहीं देता है ! बलवंता पंडिया य जे केवि नरा संति ते वि महिलाए अंगुलीहिं नच्चाविज्जंति । सं. बलवन्तः पण्डिताच ये केऽपि नरास्सन्ति, तेऽपि महिलाया अंगुलीभिर्नर्त्यन्ते । हि. बलवान और पण्डित जो कोई भी व्यक्ति हैं, वे भी स्त्री की अंगुलियों द्वारा नचाये जाते हैं। 4. प्रा. अहं वेज्जोम्हि, फेडेमि सीसस्स वेयणं, सुणावेमि बहिरं, अवणेमि तिमिरं, पणासेमि खसरं, उम्मूलेमि वाहिं, पसमेमि सूलं, नासेमि जलोयरं च । सं. अहं वैद्योऽस्मि, स्फेटयामि शीर्षस्य वेदनाम्, श्रावयामि बधिरम् , अपनयामि तिमिरम्, प्रणाशयामि कसरम्, उन्मूलयामि व्याधिम् , प्रशाम्यामि शूलम्, नाशयामि जलोदरं च ।। हि. मैं भिषक् वैद्य हूँ, मस्तक की वेदना को दूर करता हूँ, बधिर को सुनाता हूँ (सुनने योग्य करता हूँ), आँख का रोग दूर करता हूँ, विकार को नष्ट करता हूँ, व्याधि (पीड़ा) को उखेड़ता हूँ, मूल से नष्ट करता हूँ, शूल को शान्त करता हूँ और जलोदर का नाश करता हूँ। 5. प्रा. साहूणं दसणं पि हि नियमा दुरियं पणासेइ । . सं. साधूनां दर्शनमपि हि नियमाद दुरितं प्रणाशयति । हि. साधु भगवन्तों का दर्शन भी नियम से पाप का नाश करता है। 6. प्रा. रण्णा सुवण्णगारे वाहराविउण अप्पणो मउडम्मि वइराइं वेडुज्जाइं रयणाणि य रयावीअईअ । : - १०७
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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