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________________ 7. प्रा. अग्गिणा नयरं डज्झीअ । सं. अग्निना नगरमदह्यत । हि. अग्नि द्वारा नगर जलाया गया । 8. प्रा. गुरूणं भत्तीए सत्थाणं तत्ताइं णविहिरे । सं. गुरूणां भक्त्या शास्त्राणां तत्त्वानि ज्ञास्यन्ते । हि. गुरु भगवंतों की भक्ति से शास्त्रों के तत्त्व जाने जायेंगे । प्रा. अज्जवि अउज्झाए परिसरे उच्चेसु रुक्खेसु ठिएहिं जणेहिं निम्मले नह्यले धवला सिहरपरंपरा तस्स गिरिणो दीसइ । सं. अद्याप्ययोध्यायाः परिसरे उच्चेषु वृक्षेषु स्थितैर्जनैर्निर्मले नभस्तले धवला शिखरपरंपरा तस्य गिरेःदृश्यते । हि. आज भी अयोध्या के परिसर में ऊँचे वृक्षों पर रहे लोगों द्वारा निर्मल आकाशतल में उस पर्वत की सफेद शिखरों की परंपरा देखी जाती 10. प्रा. गुरूणमुवएसेण संसारो तीरइ । सं. गुरूणामुपदेशेन संसारस्तीर्यते । हि. गुरु भगवंतों के उपदेश से संसार पार किया जाता है। प्रा. भद्दे का तुमं देविव्व दीससि ? सं. भद्रे ! का त्वं देवीव दृश्यसे ? हि. हे भद्रे ! क्या तुम देवी जैसी दिखाई देती हो ? 12. प्रा. सहा केरिसी वुच्चए ? सं. सभा कीदृशी उच्यते ? हि. सभा किस प्रकार की कहलाती है ? 13. प्रा. जत्थ थेरा अत्थि सा सहा । सं. यत्र स्थविराः सन्ति सा सभा । हि. जहाँ वृद्ध पुरुष होते हैं, वह सभा कहलाती है। 14. प्र प्रा. कलिम्मि अकाले मेहो वरिसइ, काले न वरिसेज्ज, असाहू पूइज्जन्ति, साहवो न पूइहिरे । सं. कलावकाले मेघो वर्षति, काले न वर्षति , असाधवः पूज्यन्ते, साधवो न पूज्यन्ते । हि. कलियुग में मौसम बिना मेघ बरसता है, मौसम में नहीं बरसता है, असाधु पूजे जाते हैं, साधू नहीं पूजे जाते हैं । ८६
SR No.023126
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysomchandrasuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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