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________________ पुंलिंग + नपुंसकलिंग उवंग (उपाङ्ग) = अंग के अर्थ का | खंड (खण्ड) टुकड़ा, पृथ्वी का अमुक विस्तार करनेवाला सूत्र | भाग स्त्रीलिंग अद्धमागही (अर्धमागधी) = अर्धमागधी | भगवई (भगवती) = भगवती सूत्र, भाषा | पाँचवाँ अंग, अमावासा । (अमावास्या) = | भस्संतया (भस्मान्तता) = जलकर अमावस्सा) · अमावास्या, भस्म होना, आसायणा (आशातना) = विपरीत | | भासा (भाषा) = भाषा, वाक्य, वचन, वर्तन, अपमान वाणी कयली। = (कदली) वायणा (वाचना) = वाचना केली । पुंलिंग + स्त्रीलिंग ओहि । = (अवधि) मर्यादा, हद, कुच्छि = (कुक्षि) उदर, पेट तीसरा ज्ञान - | तिहि (तिथि) = तिथि, दिन अवहि ) = अतीन्द्रिय, रूपी पदार्थों को बतानेवाला ज्ञान विशेषण अहियगर (अधिकतर) = अहित पूरअ । (पूरक) = पूर्ण करनेवाला करनेवाला कोसलिय (कौशलिक) = कोशला - भंत ( भगवत । भगवान्, ऐश्वर्यवान, अयोध्या नगरी में उत्पन्न भदन्त | कल्याणकारक, जेट्ठ । (ज्येष्ठ) = महान्, सर्वथा, भ्राजत् ) देदीप्यमान, जिट्ठ J बड़ा, श्रेष्ठ भवान्त संसार और पइन्न - ग (प्रकीर्ण - क) = बिखरे हुए | (भयान्त ) सकल भयों का अन्त पाइअ (प्राकृत) स्वाभाविक, नीच, मूल, करनेवाला पामर भिक्खायस्अि (भिक्षाचरक) = भिक्षाचर पुन (पूर्व) = कालविशेष, एक पूर्व , 70| लाख 56 हजार करोड़ वर्षों का समूह | मह । = (महत्) बड़ा, वृद्ध, श्रेष्ठ, -२३९ - पूरग )
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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