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________________ पाठ 19 कर्मणि रूप और भावे रूप प्रत्यय - ईअ (ईय), इज्ज 1. धातु को ईअ (ईय) अथवा इज्ज प्रत्यय लगाकर तैयार अंग को काल के पुरुषबोधक प्रत्यय लगाने से कर्मणि या भावे रूप बनते हैं । ( ३/१६०) 2. भविष्यकाल, क्रियातिपत्त्यर्थ आदि के कर्मणि या भावे रूप कर्तरि के समान ही होते हैं । (४/२४१ तः ४ / २५७ ) 3. जो धातु सकर्मक हो तो कर्मणि प्रयोग और अकर्मक (कर्मरहित) हो तो भावेप्रयोग होता है । अकर्मक धातु = लज्जित होना, खड़ा रहना, होना, जागना, बढ़ना, जीर्ण होना, भय पाना, जीना मरना, सोना, प्रकाशित होना और खेलना, इस अर्थवाले धातु अकर्मक जानने चाहिए, इनसे अतिरिक्त अर्थवाले धातु सकर्मक जानने चाहिए । 1 4. कर्मणिप्रयोग में कर्ता तृतीया और कर्म प्रथमा विभक्ति में आता है तथा कर्म के अनुसार क्रियापद रखा जाता है । उदा. कर्तरि-कुंभारो घडं कुणइ = कुंभार घट करता है (बनाता है) • कुंभार द्वारा घट बनाया जाता है । कर्तरि - रामो जिणे अच्चेइ = राम जिनेश्वरों को पूजता है । कर्मणि-कुंभारेण घडो कुणीअइ = कर्मणि-रामेण जिणा अच्चिज्जंति = राम द्वारा जिनेश्वर पूजे जाते है । 5. भावे प्रयोग में कर्ता तृतीया विभक्ति में आता है, कर्म नहीं होता है और क्रियापद तृतीयपुरुष एकवचन में रखा जाता है । उदा. कर्तरि बालो जग्गइ = बालक जगता है । कर्मणि-बालेण जग्गिज्जइ = बालक द्वारा जगा जाता है । कर्तरि वच्छा रमंति बालक खेलते हैं । कर्मणि-वच्छेहिं रमिज्जइ = बालकों द्वारा खेला जाता है । = १२९
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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