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________________ नपुंसकलिंग जाल (जाल) = जाल , पाश रायगिह (राजगृह) = राजगृह नगर दंसणमेत्त, दंसणमत्त (दर्शनमात्र) = | वेयावच्च, वेयावडिय (वैयावृत्य) = देखने मात्र से सेवा, शुश्रूषा देववंदण (देववन्दन) = देववन्दन, संसारचक्क (संसारचक्र) = संसाररूपी जिनेश्वर को नमनक्रिया चक्र नाम (नामन्) = नाम, संज्ञा | सोत्त (श्रोत्र) = कर्ण, कान पढण (पठन) = पढ़ना । पुंलिंग + नपुंसकलिंग परक्कम, पराकम (पराक्रम) = शक्ति, | वरिस, वास (वर्ष) = बारिस, मेघ, सामर्थ्य, बल |भारत आदि क्षेत्र, संवत्सर, साल नपुंसकलिंग + स्त्रीलिंग हेट्ट, हिट्ठ (अधस्) = नीचे विशेषण करुणाजुअ (करुणायुत) = दया से | पढम (प्रथम) = प्रथम, पहला , आद्य | पावासु ) = (प्रवासिन्) मुसाफिर, दत्त, दिण्ण (दत्त) = दिया हुआ पवासु प्रवासी दाहिणिल्ल (दक्खिणिल्ल पवासि । दाक्षिणात्य) = दक्षिण दिशा का विसम (विषम) = उग्र, प्रचण्ड, सख्त दुहिअ, दुक्खिअ (दुःखित) = दुःखी, सडिअ (शटित) = सड़ा हुआ पीड़ित |साउ (स्वादु) = मधुर, स्वादिष्ट धम्मिट्ठ (धर्मिष्ठ) = धर्मपरायण, | सुहि (सुखिन्) = सुखी धर्मवान व्याप्त अव्यय अणंतखुत्तो (अनंतकृत्वस्) = अनंतबार जइ (यदि) = जो अहवा । (अथवा) = या, अथवा , पुरा (पुरस्) = पहले अहव । कि सहसा (सहसा) = अचानक, तुरन्त, एकदम ७९
SR No.023125
Book TitleAao Prakrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykastursuri, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2013
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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