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________________ आओ संस्कृत सीखें जब तक मनुष्य श्वास लेता है, (श्वस्) तब तक जीता है । ( प्र + अन्) जैन लोग उपवास के दिन कुछ नहीं खाते हैं । (जक्ष्) जो लोग पुरुषार्थ नहीं करते हैं, वे दरिद्र बनते हैं । (दरिद्रा) हिन्दी में अनुवाद करो अहो दीप्तिमतोऽपि विश्वसनीयताऽस्य वपुषः । 4. 5. 6. 1. 2. अनुशास्तु मां भवान् । 3. 4. किं रोदिषि किन्ते रोदनकारणम् ? 7. 69 5. हृदयेऽमान्त्या शुचा सा भृशमरोदीद् । 6. निःश्वस्य शनैरवदन्महाभाग ! किं कथयामि मन्दभाग्या ? प्रतापेन द्योतमानो दशरथो महीमन्वशात् । न प्रयोजनमन्तरा चाणक्यः स्वप्नेऽपि चेष्टते । 8. हृदय ! आश्वसिहि आश्वसिहि आर्यपुत्रः खल्वेषः । 9. 'विश्वास्येष्वपि विश्वसन्ति मतयो न स्वेषु वर्गेषु नः । 10. दमयन्ती निशाशेषे एवं स्वप्नमुदैक्षत- यदहं फलिते फुल्ले पत्रले चूत - पादपे-आरुह्य तत्फलान्यादं शृण्वती भृङ्ग- निस्वनान् ।। 11. एकेनाऽपि सुपुत्रेण, सिंही' स्वपिति निर्भयम् । सहैव दशभिः पुत्रै, र्भारं वहति गर्दभी ।। 2. टिप्पणी : 1. ऋ वर्णान्त धातु तथा व्यंजनांत धातु को य (घ्यण्) प्रत्यय लगकर विध्यर्थ कृदन्त बनता है । कृ + य (घ्यण्) = कार्य विश्वास करने योग्य । णित् प्रत्यय होने से वृद्धि हुई है । अकारांत जातिवाचक नाम को स्त्री लिंग में ई (ङी) प्रत्यय लगता है, ई प्रत्यय लगने पर अ का लोप होता है । उदा. सिंह + ई = सिंही, गर्दभी । । वि + श्वस् + य (घ्यण् ) 1 = विश्वास्य ।
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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