SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आओ संस्कृत सीखें 5. अच्छे मनवाला प्रणाम करने की इच्छावाला कुमार पिता के पास ( पितरि ) आया। समान धर्मवा मनुष्य को देखकर समान धर्मवाले मनुष्य खुश होते हैं। 6. 7. 8. वह कुमार तीन जगत् में (उप चतुरेषु जगत्सु) प्रख्यात था । (सम्+प्रथ्) इस जगत् में सर्वोत्तम पुरुष दो या तीन, दो या चार, तीन या चार अथवा पाँचछह होते हैं । 9. अच्छी गंधवाले दूध और सुगंधित चावल (कलम) को छोड़कर लोग खराब गंधवाले मांस (पल) को चाहते हैं। (काङ्क्ष) 10. कुमारपाल राजा द्वारा सुस्वामीवाली इस पृथ्वी पर कोई भी मनुष्य किसी भी जीव को मारता नहीं था । 11. बहुत हैं वीर पुरुष जिसमें, ऐसे इस गाँव को शत्रुओं का भय उपस्थित नही होता है। (उप+स्था) 231 1. भूषणाद्युपभोगेन प्रभुर्भवति न प्रभुः । परैरपरिभूताऽऽज्ञस्त्वमिव प्रभुरुच्यते ।। 2. अद्य मे सफलं जन्म, अद्य मे सफला क्रिया । अद्य मे सफलं गात्रं, जिनेन्द्र ! तव दर्शनात् ।। 3. निरीक्षितुं रूपलक्ष्मी सहस्राक्षोऽपि न क्षमः । स्वामिन्सहस्त्रजिह्वोऽपि, शक्तो वक्तुं न ते गुणान् ।। खमिव जलं जलमिव खं, हंस इव शशी शशाङ्क इव हंसः । कुमुदाकारास्तारा: ताराकाराणि कुमुदानि ।। वदनस्य तवैणाक्षि ! लक्ष्यते पुरतः शशी । पिण्डीकृतेन बहुना कज्जलेनेव निर्मितः ।। 6. सुप्तामेकाकिनींमुग्धां विश्वस्तां त्यजतः सतीम् । उत्सेहाते कथं पादौ नैषधेरल्पमेधसः ।। अखण्डशासने राज्ञि तस्मिन्नाखण्डलोपमे । एकातपत्रैवाभूद् भूर्द्यौरिवैकनिशाकरा ।। 8. दुर्मेधसस्तस्य वचोऽल्पमेधसः, श्रुत्वेति राज्ञा जगदे सुमेधसा । अमेधसो धिग्बत मन्दमेधसो, हिंसन्ति जन्तून्निजजीविकाकृते ।। 9. भद्र ! किमसि वक्तुकामः ? | 10. शुद्धाऽकषायहृदयो जितकरणकुटुम्बचेष्टो मुक्तकुटुम्बस्नेहो योगी मोक्षपदं प्राप्य न संसारे समायाति । 4. 5. हिन्दी में अनुवाद करो 7.
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy