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________________ आओ संस्कृत सीखें आखण्डल = इंद्र आदि = प्रारंभ उत्सेध = ऊंचाई उरु = जंघा करभ = जानवर का बच्चा कलम = कलमी चावल कषाय = राग-द्वेष कुम्भ = घड़ा जन्तु = जीवजंतु धव = पति निशाकर = चंद्र पूल = घास का पूला मातङ्ग = हाथी लक्ष्मण = सुंदर शशाङ्क = चंद्र स्मय = गर्व |सफ = संक्लिष्ट हरिण = हिरण उपमा = सदृशता 230 4. शब्दार्थ (पुंलिंग) | कन्धरा = गर्दन (पुंलिंग) खट्वा = पलंग (पुंलिंग) चेष्टा = प्रवृत्ति (पुंलिंग) जीविका = आजीविका (पुंलिंग) तारा = तारा (पुंलिंग) मेधा = बुद्धि (पुंलिंग) रम्भा = केल - (पुंलिंग) आतपत्र = छत्र (पुंलिंग) उरस् छाती (पुंलिंग) कज्जल = काजल (पुंलिंग) करण = इन्द्रिय (पुंलिंग) गात्र = शरीर - (पुंलिंग) पल = मांस (पुंलिंग) लोमन = रोम (पुंलिंग) पूति = खराब (पुंलिंग) सहस्रजिह्न = बृहस्पति (पुंलिंग) सहस्राक्ष = इंद्र (पुंलिंग) अन्तर् = अंदर ( स्त्री लिंग) | अस्ति = है (स्त्रीलिंग) (स्त्रीलिंग) (स्त्रीलिंग) (स्त्रीलिंग) (स्त्रीलिंग) (स्त्रीलिंग) (स्त्रीलिंग) (नपुंसक लिंग) (नपुंसक लिंग) ( नपुंसक लिंग) ( नपुंसक लिंग) (नपुंसक लिंग) ( नपुंसक लिंग) (नपुंसक लिंग) (विशेषण) (पुंलिंग) (पुंलिंग) (अव्यय) (अव्यय) धातु उद्+सह् = उत्साह रखना गण 1 आत्मने. काङ्क्ष = इच्छा करना - गण 1 परस्मै. उप+स्था = हाजिर होना गण 1 आत्मने. सम् + प्रथ् = प्रख्यात होना गण 1 आत्मने. संस्कृत में अनुवाद करो 1. नौ या ग्यारह गुर्जर सुभटों ने, मस्त हैं बहुत से हाथी ऐसे शत्रु के सैन्य में, चढ़े हुए सैनिकवाले नब्बे घोड़ों को मारा ( हन्) । 2. हे वामोरु और हे पीनोरु ! तुम यहाँ बैठो । 3. तीव्र पाप के उदय में रंभा समान जंघावाली भार्यावाला अथवा शोभन भार्यावाला भी दुःख का स्थान बनता है । (दुःखास्पदम् ) अग्निकोण में रहा अग्नि सतेज होता है।
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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