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आओ संस्कृत सीखें
आखण्डल = इंद्र आदि = प्रारंभ
उत्सेध = ऊंचाई उरु = जंघा
करभ = जानवर का बच्चा
कलम = कलमी चावल कषाय = राग-द्वेष
कुम्भ = घड़ा जन्तु = जीवजंतु धव = पति
निशाकर = चंद्र
पूल = घास का पूला मातङ्ग = हाथी
लक्ष्मण = सुंदर
शशाङ्क = चंद्र
स्मय = गर्व
|सफ = संक्लिष्ट
हरिण
= हिरण
उपमा = सदृशता
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4.
शब्दार्थ
(पुंलिंग) | कन्धरा = गर्दन (पुंलिंग) खट्वा = पलंग
(पुंलिंग) चेष्टा = प्रवृत्ति (पुंलिंग) जीविका = आजीविका (पुंलिंग) तारा = तारा (पुंलिंग) मेधा = बुद्धि
(पुंलिंग) रम्भा = केल
-
(पुंलिंग) आतपत्र = छत्र (पुंलिंग) उरस् छाती (पुंलिंग) कज्जल = काजल (पुंलिंग) करण = इन्द्रिय (पुंलिंग) गात्र = शरीर
-
(पुंलिंग) पल = मांस
(पुंलिंग) लोमन = रोम (पुंलिंग) पूति = खराब (पुंलिंग) सहस्रजिह्न = बृहस्पति (पुंलिंग) सहस्राक्ष = इंद्र (पुंलिंग) अन्तर् = अंदर
( स्त्री लिंग) | अस्ति = है
(स्त्रीलिंग)
(स्त्रीलिंग)
(स्त्रीलिंग)
(स्त्रीलिंग)
(स्त्रीलिंग)
(स्त्रीलिंग)
(स्त्रीलिंग)
(नपुंसक लिंग)
(नपुंसक लिंग)
( नपुंसक लिंग)
( नपुंसक लिंग) (नपुंसक लिंग)
( नपुंसक लिंग)
(नपुंसक लिंग)
(विशेषण)
(पुंलिंग)
(पुंलिंग)
(अव्यय)
(अव्यय)
धातु
उद्+सह् = उत्साह रखना गण 1 आत्मने. काङ्क्ष = इच्छा करना - गण 1 परस्मै. उप+स्था = हाजिर होना गण 1 आत्मने. सम् + प्रथ् = प्रख्यात होना गण 1 आत्मने. संस्कृत में अनुवाद करो
1. नौ या ग्यारह गुर्जर सुभटों ने, मस्त हैं बहुत से हाथी ऐसे शत्रु के सैन्य में, चढ़े हुए सैनिकवाले नब्बे घोड़ों को मारा ( हन्) ।
2. हे वामोरु और हे पीनोरु ! तुम यहाँ बैठो ।
3.
तीव्र पाप के उदय में रंभा समान जंघावाली भार्यावाला अथवा शोभन भार्यावाला भी दुःख का स्थान बनता है । (दुःखास्पदम् ) अग्निकोण में रहा अग्नि सतेज होता है।