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________________ आओ संस्कृत सीखें समास अर्थात् पदों का संक्षेप । समास से भाषा संक्षिप्त बनती है और थोड़े शब्दों में भी ज्यादा कह सकते हैं। होगा । 221 हर भाषा में समास का प्रयोग होता है। जो पद परस्पर अपेक्षित संबंधवाले हों, उन्हीं पदों का समास होता है। पदों में परस्पर अपेक्षा न हो तो समास नहीं होता है। उदा. इदं देवदत्तस्य गृहं दृश्यते इदं देवदत्तगृहं दृश्यते - देवदत्त और गृह का संबंध होने से यहाँ समास समास पुस्तकं इदं देवदत्तस्य, गृहं इदं जिनदत्तस्य यहाँ देवदत्त और गृह में संबंध नहीं होने से समास नहीं होगा । समास को एक पद भी कहते हैं, इसी कारण एक समास का दूसरे पद या समास के साथ समास हो सकता है। समास एक पद कहलाता है अर्थात् एक स्वतंत्र शब्द बनता है अर्थात् समास होने पर भिन्न भिन्न विभक्तियों से प्रत्ययों का लोप हो जाता है और उस समास शब्द से ही विभक्ति के प्रत्यय लगते हैं। समास के अंत में रहे शब्द के लिंग के अनुसार सामासिक शब्दों का लिंग होता 'देवदत्तस्य गृहम्' का समास होने पर 'देवदत्तगृह' - एक शब्द बनता है, अत: उससे विभक्ति के प्रत्यय आते हैं और रूप चलेंगे । उदा. प्रथमा-द्वितीय - ★ - देवदत्तगृहम् देवदत्तगृहेण तृतीया नीलं च तद् उत्पलं च - नीलोत्पलम् रूप नीलोत्पलम्, नीलोत्पले, नीलोत्पलानि । रामश्च लक्ष्मणश्च - रामलक्ष्मणौ रामलक्ष्मणाभ्याम् धवश्च खदिरश्च पलाशश्च धवखदिरपलाशाः धवखदिरपलाशान्, " - देवदत्तगृहे देवदत्तगृहाभ्यां देवदत्तगृहाणि देवदत्तगृहैः धवखदिरपलाशैः । धवश्च खदिरश्च अनयोः समाहारः धवखदिरम्, धवखदिरेण, धवखदिराय आदि
SR No.023124
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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