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________________ 149 आओ संस्कृत सीखें नहीं होता है, अतः कर्ता को तृतीया विभक्ति होती है । उदा. समुद्रैः क्षुभ्यते । मया गम्यते । शब्दार्थ अलभ्य = प्राप्त न हो ऐसा (विशेषण) निशा = रात्रि (स्त्री) क्वचित् = कहीं, कभी (अव्यय) मैत्र = उस नाम का पुरुष तृष्णा = आशा (स्त्रीलिंग) रण = युद्ध (न.) श्रावक = श्रावक (पुं.) श्रद्धा = विश्वास (स्त्री) धातुएँ काश् = प्रकाशित होना (गण 1, आत्मनेपदी) दिश् = बताना, दान देना (गण 6, उभयपदी) उप + दिश् = उपदेश देना आ + दिश् = आदेश देना अभि + भू = तिरस्कार करना (गण-1, परस्मैपदी) कर्तरि प्रयोग के कर्मणि प्रयोग कर्तरि कर्मणि स मां पश्यति । तेनाऽहं दृश्ये । स आवां पश्यति । तेनाऽऽवां दृश्यावहे । अहं युवां पश्यामि । मया युवां दृश्येथे । | अहं त्वां पश्यामि । मया त्वं दृश्यसे । कर्तरि भावे प्रयोग समुद्राः क्षुभ्यन्ति । समुद्रेण क्षुभ्यते । अहं गच्छामि । मया गम्यते । युवां गच्छथः । युवाभ्यां गम्यते । Note : भावे प्रयोग में कर्ता बदलता है, परंतु क्रियापद तीसरा पुरुष एक वचन में ही रहता है ।
SR No.023123
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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