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________________ आओ संस्कृत सीखें उदा. स ईक्षते - वह देखता है । 44 स निरीक्षते - वह सूक्ष्मता से देखता है । 5. कोई उपसर्ग धातु के साथ सिर्फ जुड़ा रहता है परंतु धातु के अर्थ में कुछ भी परिवर्तन नहीं करता है । 9. उदा. स विशति - वह प्रवेश करता है । स प्रविशति - वह प्रवेश करता है । 6. कुछ उपसर्ग धातु के पद में परिवर्तन लाते हैं । उदा. जयति = जय पाता है । पराजयते = पराजय पाता है तिष्ठति = ठहरता है । प्रतिष्ठते = प्रस्थान करता है । रमते = क्रीड़ा करता है । विरमति = विराम पाता है । 7. हेतु नाम को तृतीया विभक्ति होती है । 8. हेतु अर्थात् कार्य करने में प्रयोजन रूप । उदा. धनेन कुलम् - कुल की ख्याति में धन सहायक होने से धन को तृतीया विभक्ति लगती है । अन्नेन वसति तृतीया विभक्ति होगी । स्त्रीलिंग नाम सिवाय के गुणवाचक हेतु नाम को तृतीया या पंचमी विभक्ति होती है । अन्न प्राप्ति के प्रयोजन से रहता है, अतः अन्न को उदा. धर्मात् सुखं । धर्मेण सुखम् । ज्ञानाद् मुक्तः । ज्ञानेन मुक्तः । 10. अमुक वस्तु लेकर उसके बदले में दूसरी वस्तु देनी हो तो, जो वस्तु लेनी हो तो प्रति-बदले अव्यय के योग में उसे पंचमी विभक्ति होती है । उदा. तिलेभ्यः प्रति माषान् प्रयच्छति । तिल के बदले में उड़द देता है ।
SR No.023123
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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