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________________ . 43 आओ संस्कृत सीखें 5. तयोः पाठशालयोश्छात्राः पठन्ति । 6. यथा लतया वृक्षस्तथा क्षमया श्रमणः शोभते । 7. ता बाला मालायै पुष्पाणि नयन्ति । 8. गङ्गायां सरला मञ्जुला सीता च क्रीडन्ति । 9. हे सीते ! तव कन्ये देवमर्चतः । 10. हे महिलाः ! यूयं कथं गृहं न रक्षथ ? 11. चिन्ता शरीरं दहति, क्षमा च पुष्यति । 12. सा बाला यमुनां गच्छति । 13. क्षमा वीरस्य भूषणम् । पाठ-21 उपसर्ग प्र आदि अव्यय प्र, अनु, दुस् नि अधि अति परा अव दुर् प्रति अपि अभि अप निस् वि परि सु सम् निर् आ उप उद् 1. प्र आदि अव्यय धातु के पहले जुड़कर धातु का अलग-अलग अर्थ पैदा करते हैं, तब वे उपसर्ग कहलाते हैं । 2. कोई उपसर्ग धातु के मूल अर्थ से अलग ही अर्थ बताता है । जैसे :- स गच्छति - वह जाता है । स आगच्छति - वह आता है । स विशति - वह प्रवेश करता है । स उपविशति - वह बैठता है । 3. कोई उपसर्ग धातु के अर्थ का ही अनुसरण करता है और धातु के साथ अवश्य जुड़ रहता है । स अनुरुध्यते - वह चाहता है | 4. कोई उपसर्ग धातु के अर्थ में बढ़ोतरी करता है ।
SR No.023123
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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