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________________ आओ संस्कृत सीखें दान = दान हिरण्य = सोना चक्र = चक्र 1. स्पृह धातु का कर्म विकल्प से उदा. पुष्पाणि स्पृहयति । पुष्पेभ्यः स्पृहयति । 2. नपुंसक नाम सुवर्ण = सोना सुख = सुख दुःख = दुःख संप्रदान होता है । 30 क्रोध, द्रोह, ईर्ष्या-असूया अर्थवाले धातु के योग में जिसके प्रति क्रोध होता हो, उसे संप्रदान-चतुर्थी विभक्ति होती है । उदा. मैत्राय क्रुध्यति । मैत्राय कुप्यति । मैत्राय दुह्यति । 3. उपसर्ग पूर्वक क्रुध् -द्रुह धातु हो तो जिसके प्रति क्रोध हो उसे संप्रदानचतुर्थी विभक्ति न होकर कर्म - द्वितीया विभक्ति होती है । उदा. मैत्रमभिक्रुध्यति । 4. रुचि अर्थ वाले धातु के योग में जिसे रुचि हो उसे चतुर्थी विभक्ति होती है । उदा. जिनदत्ताय रोचते धर्मः । संस्कृत में अनुवाद करो 1. मनुष्य आभूषण द्वारा शरीर सजाते हैं । 2. धर्म से धन बढ़ता है । 3. रथ दो पहियों से चलता है । 4. जीव पानी द्वारा जीते हैं । 5. मैं तुम दोनों के साथ तैरता हूँ । 6. 7. 8. हम दो, दो विद्यार्थियों को दो पुस्तकें देते हैं । मैं दो पुत्रों के साथ तुमको बार बार नमस्कार करता हूँ । धर्म सुख के लिए होता है, दुःख के लिए नहीं । हिन्दी में अनुवाद करो 1. जना दुःखेन मुह्यन्ति । 2. वृद्धो दण्डेन चलति । 3. मित्रेण सह रतिलालो वसति । 4. अहं ताभ्यां सह नगरं गच्छामि । 5. बाला मोदकैस्तुष्यन्ति । 6. आवाभ्यां सह वीरं पूजयथ । 7. स त्वया सह पठति मया सह न । 8. श्रीचन्द्रो युष्माभिः सह जेमति ।
SR No.023123
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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