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________________ आओ संस्कृत सीखें धातु = फलना, साकार होना (गण 1 परस्मैपदी) शब्दार्थ फल् = उत्कर = ढेर (पुंलिंग) कण = दाना (पुंलिंग) पराक्रम = पराक्रम (पुंलिंग) नय = नीति (पुंलिंग) कबरी = वेणी (स्त्रीलिंग) 118 जरा = बुढ़ापा (स्त्रीलिंग) गुहा = गुफा (स्त्रीलिंग) चिरात् = लंबे समय से (अव्यय) अन्यथा = दूसरी तरह (अव्यय) वक्त्र = मुख (नपुं. लिंग) प्रतिकूल = विपरीत (नपुं. लिंग) गहन = कठिन (विशेषण) राजा ! तुम प्रजा का पालन करो । अगम्य = प्राप्त न हो ऐसा (विशेषण) भोज्य : = खाना (विशेषण) विषम = कठिन (विशेषण) संस्कृत में अनुवाद करो 1. 2. इस कन्या की वेणी में फूलों की दो मालाएँ हैं। 3. तुम्हारे भाई का नाम कहो । 4. इस राजा में ज्यादा पराक्रम है । 5. 6. 7. 8. राजा और रानी रथ में बैठकर उद्यान में गए । बालक द्वारा आकाश में चंद्रमा देखा गया । गुणी गुण को देखता है, दोष को नहीं । होनेवाली बात अन्यथा नहीं होती है । 9. योगी पर्वत की गुफाओं में बसते हैं। 10. हाथी के मस्तक में मोती उत्पन्न होते हैं । हिन्दी में अनुवाद करो 1. अहो ! अस्य राज्ञः विवेकसीमा । 2. कणानामिव रत्नानामुत्करास्तस्य वेश्मनि । आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् । 3. 4. विद्या राजसु पूजिता न तु धनम् । 5. जन्म दुःखं जरा दुःख मृत्यु दुःखं पुनः पुनः । 6. कर्मणां विषमा गतिः । 7. यथा राजा तथा प्रजाः । 8. किं स्वादुनाऽपि भोज्येन, रोचते न यदात्मने । 9. पशवोऽपि हि रक्षन्ति पुत्रान्प्राणानिवात्मनः ।
SR No.023123
Book TitleAao Sanskrit Sikhe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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